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Friday, 29 May 2020

Works Programme

Works Programme

निर्माण कार्यक्रम क्या है? यह कैसे संकलित किया जाता है?


परिभाषा:
इंजीनियरिंग संहिता अध्याय -VI
रेलों पर परिसंपत्तियों के सृजन(creation),अधिग्रहण (acquisition) और बदलाव (replacement) से संबंधित निवेश निर्णय तीन विभिन्न प्रोग्रामों के जरिए संसाधित किए जाते हैं।

(1) रोलिंग स्टॉक प्रोग्राम (प्लान हेड 21)
(2) मशीनरी एवं प्लांट प्रोग्राम (प्लान हेड 41)
(3) निर्माण कार्यक्रम (विभिन्न प्लान हेड के तहत)

वर्क्स प्रोग्राम के चार चरण है

(1) अग्रिम योजना के भाग के रूप में योजनाओं(स्कीमों) का निरूपण;
(2) बड़ी योजनाओं की छानबीन और स्वीकृति के लिए रेलवे बोर्ड को प्रस्तुत करना ताकि आगामी वर्ष में निष्पादित की जाने वाली परियोजनाओं का चयन किया जा सके;
(3) रेलवे बोर्ड द्वारा निर्धारित वित्तीय सीमाओं के अंतर्गत प्रारंभिक निर्माण कार्यक्रम(PWP) तैयार करना और
(4) रेलवे बोर्ड के साथ विचार-विमर्श और अंतिम कार्यक्रम प्रस्तुत करना(FWP)

चरण प्रथम   (अग्रिम योजना)

  • किसी रेलवे का वार्षिक निर्माण कार्यक्रम तैयार करना उस वर्ष का कोई अलग-अलग कार्य नहीं होता है बल्कि मंडल अधिकारी के स्तर से लेकर रेलवे बोर्ड तक की एक अनवरत योजना प्रक्रिया का भाग होता है।
  • मंडल से होने वाले निवेश प्रस्ताव वह होते हैं जिनका उद्देश्य मंडल के ही भीतर परिचालन में सुधार या जमघट (बाधाओं)को समाप्त करना हो।
  • जिन बड़े निवेश प्रस्तावों से क्षेत्रीय रेल प्रणाली या सभी भारतीय रेलों को लाभ पहुंचता हो उन्हें रेल मुख्यालय के स्तर पर अथवा आवश्यक हो तो रेलवे बोर्ड के स्तर पर समन्वित और योजनाबद्ध किया जाना चाहिए।
  • नई लाइनों, आमान परिवर्तनों, दोहरी लाइन बिछाने और लाइन क्षमता से संबंधित अन्य निर्माण कार्यों के लिए जो 5 करोड़ रुपए से अधिक की लागत वाले हो, विस्तृत यातायात और इंजीनियरी सर्वेक्षण किए जाने चाहिए।
  • नए मार्शलिंग यार्डों, माल टर्मिनलों और यातायात यार्डों आदि के प्रस्ताव के संबंध में, कार्य अध्ययन दलों को चाहिए कि अपेक्षित अतिरिक्त सुविधाओं के लिए स्कीमें बनाने से पहले वास्तविक कार्यप्रणाली का अध्ययन कर लें ।
  • रेट ऑफ रिटर्न 10% और उससे अधिक होना चाहिए।
  • जब किसी सामान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कई कार्य करने हो तो समग्र रूप से संपूर्ण योजना का वित्तीय फलितार्थ या औचित्य तैयार किए जाने चाहिए।
  • यदि किसी विस्तृत योजना में दो रेले शामिल हो, तो ऐसे मामले में रेलवे बोर्ड के विचारार्थ लागत का एक संयुक्त प्राक्कलन तैयार किया जाना चाहिए ।जिस रेलवे के क्षेत्र में कार्य का बड़ा भाग आता हो, उसे चाहिए कि लागत और वित्तीय फलितार्थ के संयुक्त आँकड़े रेलवे बोर्ड को प्रस्तुत करने के लिए, संलग्न  रेलवे से आंकड़े प्राप्त करें।

चरण द्वितीय (बड़ी योजनाओं की छानबीन)

  • 20 लाख रुपये या अधिक की लागत वाली सभी स्कीमें विस्तृत रूप से तैयार की जानी चाहिए और निम्नलिखित बातों के पूरे ब्यौरे सहित रेलवे बोर्ड को भेजी जानी चाहिए।
(i) तकनीकी विशेषताएं
(ii) ब्यौरेवार लागत
(iii) प्राप्त होने वाले संभावित लाभ
(iv) वित्तीय फलितार्थ
(v) प्रत्येक प्रस्ताव का मानचित्र
  • रेल प्रशासन को स्पष्ट रूप से प्रत्येक स्कीम का उल्लेख करना चाहिए और इस बात की पुष्टि करनी चाहिए कि प्रस्ताव द्वारा उद्देश्य की पूर्ण रूप से पूर्ति होती है और परियोजना का दायरा और लागत यथासंभव पूरे छानबीन के बाद तय किए गए हैं, जिसमें वित्तीय फलितार्थों का मूल्यांकन भी सम्मिलित है।
  • बोर्ड द्वारा योजनाओं की छानबीन हो जाने के पश्चात रेल प्रशासनों को बताया जाना चाहिए कि प्रस्तावों को निर्माण कार्यक्रम में सम्मिलित करने के लिए संशोधन पूर्वक या ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया गया है।
  • 20 लाख रुपये या इससे अधिक की लागत वाले रेल पर नवीनकरण के सभी प्रस्तावों में (i) यातायात का घनत्व (ii) ट्रैक की आयु (iii) रेलपथ संघटकों (components) की स्थिति होनी चाहिए। ये प्रारंभिक छानबीन रेलवे बोर्ड द्वारा रेल पथ सामग्री की उपलब्धता, पहले से स्वीकृत निर्माण कार्यों की प्रगति और अन्य तकनीकी बातों को ध्यान में रखकर की जाती है।

चरण तृतीय (प्रारंभिक निर्माण कार्यक्रम तैयार करना PWP)

  • इस बात को  सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी  प्रधानतः PCE (Principal chief engineer) रेलवे मुख्य इंजीनियर की होगी की विभिन्न विभागों द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव हर प्रकार से पूर्ण है और सही-सही तैयार किया गया है।
  • बोर्ड द्वारा बताई गई सीमाओं के भीतर समग्र प्राथमिकताएं भी उसी के द्वारा महाप्रबंधक और अन्य विभागाध्यक्षों के परामर्श से नियत की जाएगी। वह प्रारंभिक और अंतिम निर्माण कार्यक्रम को तैयार करने उसे समय पर प्रस्तुत करने के लिए जिम्मेदार होगा।
  • रेलवे बोर्ड को चाहिए कि प्रत्येक वर्ष लगभग जून/जुलाई में प्रत्येक रेलवे को सूचित कर दें कि प्रत्येक योजना शीर्ष के संबंध में कुल कितने परिव्यय के भीतर रेलवे द्वारा निर्माण कार्यक्रम तैयार किया जाए।
  • रेल द्वारा आगामी वर्ष का प्रारंभिक निर्माण कार्यक्रम रेलवे बोर्ड को सितंबर के प्रथम सप्ताह तक या बोर्ड ने उससे पहले की कोई तारीख निर्धारित की हो तो उस तारीख तक प्रस्तुत कर दिया जाना चाहिए। प्रत्येक निर्माण कार्य का समुचित वित्तिय मूल्यांकन प्रमुख वित्त सलाहकार की टिप्पणियों सहित प्रारंभिक कार्यक्रम में दिया जाना चाहिए।
  • चालू निर्माण कार्यों (works in progress) को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • परियोजना लागत ,मात्रा और चालू कीमत दरों की दृष्टि से पक्के आंकड़ों पर आधारित होनी चाहिए और यदि परियोजना की प्रारंभिक तैयारी और निर्माण कार्यक्रम में इसको सम्मिलित किए जाने के समय के बीच की अवधि में कीमतों में कोई वृद्धि होती है तो माल-भाड़ा और किराए में वृद्धि के अतिरिक्त मजदूरी के और सामग्री के मूल्यों में हुए परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए प्राक्कलन को अपडेट किया जाना चाहिए।
  • किसी भी अन्य वृद्धि, जैसे परियोजना के दायरे में परिवर्तन के कारण होने वाली वृद्धि की अनुमति पूर्व कारण प्रस्तुत करके रेलवे बोर्ड की स्वीकृति लिए बिना नहीं दी जाएगी।
  • प्रत्येक निवेश प्रस्ताव के साथ एक विस्तृत प्लान संलग्न होना चाहिए जिसमें यातायात की आवश्यकताओं  के अनुरूप परियोजना का कार्यक्रम दिखाया गया हो तथा वर्ष के लिए प्रस्तावित वित्तीय परिव्यय इस परियोजना कार्यक्रम के अनुसार होना चाहिए, जिससे कि रेलवे बोर्ड कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए वस्तुतः धन की नियतन की व्यवस्था कर सके।

चरण चतुर्थ (अंतिम निर्माण कार्यक्रम FWP)


  • पृथक पृथक रेलों के कार्यक्रमों की जांच करने और महाप्रबंधकों के साथ विचार विमर्श करने के पश्चात रेलवे बोर्ड उन निर्माण कार्यों का विनिश्चय करेगा कि आगामी वर्ष के दौरान हाथ में लिए जाने चाहिए और और जो अंतिम निर्माण कार्यक्रम में शामिल किए जाने चाहिए।
  • क्षेत्रीय रेलवे रेलवे बोर्ड के विनिश्चय के परिणाम स्वरूप अपने निर्माण कार्यक्रमों को अशोधित करेंगे और रेलवे बोर्ड को अपना अंतिम निर्माण कार्यक्रम अनुबंधित तारीख तक भेजेंगे।
  • मांग सकल व्यय (Gross Expenditure) के लिए होगी और जमा और वसूलियों (credits and recoveries ) मांगों को फुटनोट के रूप में दिखाई जाएगी।





Thursday, 28 May 2020

Differences between Operating Ratio and Performance Efficiency Index


Differences between Operating Ratio and Performance Efficiency Index.

Operating Ratio (O.R) परिचालन अनुपात
Performance Efficiency Index (PEI) प्रदर्शन दक्षता सूचकांक
1.परिचालन अनुपात में माँग संख्या 03 से 13 तक के व्यय को शामिल किया जाता है ।
1.PEI में माँग संख्या 03 से 12 तक के व्यय को शामिल किया जाता है।
2.ये विभाजित आय (Apportioned) के लिए प्रयुक्त होता है।
2. ये उत्पन्न आय (Originating) के लिए प्रयुक्त होता है।
3. इसमें DRF एवम्‌ पेंशन में विनियोग भी शामिल होता है ।
3. इसमें DRF एवम्‌ पेंशन में विनियोग भी शामिल नहीं होता है ।
4. इसकी गणना जोनल स्तर पर होता है ।
4. इसकी गणना मंडल स्तर पर होता है ।
5. इसके निकालने के सूत्र है :
Gross Working Expenses   X 100
Gross Earning                  

5. इसके निकालने के सूत्र है :
Demands 03 to 12   X 100
Originating Earning

GWE= OWE+Appropriation to DRF & Pension Fund

OWE= 03 to 13 demands expenditure

(2016 WO, 2017-18 Books & Budget)

Tuesday, 26 May 2020

Differences between RECT and PECT

Differences between RECT and PECT



RECT SURVEY
PECT SURVEY
1.Full Form:-Reconnaissance       Engineering cum Traffic   Survey

1.Full Form:-Preliminary Engineering                          cum  Traffic  Survey
                  
2.इंजीनियरिंग सर्वेक्षण किसी क्षेत्र का रफ एवम्‌ रैपिड जाँच है।
2. यह सर्वेक्षण प्रस्तावित लाइन के निर्माण के लिए किया जाता है किंतु संरेखण (Alignment) में अंतिम रुप से खूँटा नहीं गाड़ा जाता है।
3. तकनीकी व्यवहारिकता तथा लगभग लागत मालूम करने के लिए किया जाता है ।
3 .लागत का सही प्राक्कलन ज्ञात करने के लिए किया जाता है ।
4. ये सर्वेक्षण बिना उपकरण के किया जाता है ।
4. प्राथमिक इंजीनियरिंग सर्वेक्षण विस्तृत उपकरणीय जांच है।
5.वह उपकरण जिनसे अनुमानित दूरी और ऊँचाई पता लग सके इस सर्वेक्षण के आधार पर ही यह फैसला किया जाता है कि और अन्वेषण कि जरूरत है कि नहीं।
5.इसमें टोह सर्वेक्षण कि अपेक्षा अधिक विस्तृत अध्ययन किया जाता है ।

Monday, 25 May 2020

Umbrella Works

Umbrella Works 
1.एक छतरी के नीचे विभिन्न स्थानों पर समान काम करने के लिए रेलवे बोर्ड द्वारा सिंगल वर्क के रूप में अनुमोदन देने को "अंब्रेला वर्क्स" कहते हैं।
2. "अंब्रेला वर्क्स" की अवधारणा 2018-19 से रेलवे में लाई गई है।
3.अंब्रेला वर्क के मुख्य उद्देश्य है:
(i) पूरे वर्ष कार्य स्वीकृति के लिए लचीलापन
(ii) उस क्षेत्र को चिन्हित कर चैनेलाइज करना जहां रेलवे निवेश करना चाहती है।
4.यह दो प्रकार के होते हैं :
(i) एक ऐसे कार्य जो एक ही रेलवे/यूनिट में संपन्न होता है।
(ii) एक ऐसे कार्य जो एक से अधिक रेलवे में संपन्न होता है।
5. प्लान हेड 11(नई लाइन), 14 (दोहरीकरण),15 (गेज परिवर्तन), 31 (ट्रैक रिन्यूअल), 35 (बिजली करण) के तहत अंब्रेला वर्क्स करने के लिए स्वीकृति रेलवे बोर्ड से लिया जाता है।
6. रेलवे बोर्ड से सूचना प्राप्त होते ही क्षेत्रीय रेलवे द्वारा डीपीआर तैयार कर रेलवे बोर्ड को भेजी जाएगी और कार्य की स्वीकृति होने पर अगले वर्ष के पिंक बुक में आइटमकृत कर प्रदर्शित किया जाएगा।
7. अन्य प्लान हेड्स के लिए और एक से अधिक जोनल रेलवे में फैले कार्यों के लिए AM/PED नोडल निदेशालय होगा और प्रत्येक जोन के लिए जरूरत के आधार पर पिंक बुक में कुल लागत और परिव्यय वितरित करेंगे।
8. प्रथम फेज में अंब्रेला वर्क्स के 80% कॉस्ट को महाप्रबंधक द्वारा स्वीकृत किया जाएगा।
9. द्वितीय फेज में अंब्रेला वर्क के 20% अतिरिक्त कॉस्ट को पूरे वर्ष के दौरान महाप्रबंधक अनुमोदन देंगे और अगर आवश्यकता हुई तो रेलवे बोर्ड से स्वीकृति ली जाएगी।
10. महाप्रबंधक 50 करोड़ तक के कार्य को स्वीकृत कर सकते हैं अगर डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) 50 करोड़ से अधिक है तो रेलवे बोर्ड स्वीकृति के लिए भेजी जाएगी प्रारंभ में महाप्रबंधक अंब्रेला वर्क्स के कॉस्ट के 80% तक अनुमोदन कर सकते हैं ।
11. अंब्रेला वर्क्स के तहत स्वीकृत विभिन्न कार्य को सब- वर्क्स के रूप में जाना जाएगा और LAW बुक में इसे अलग से दिखाया जाएगा।
12. विस्तृत प्राक्कलन प्रत्येक कार्य के लिए अलग से दिखाया जाएगा।
13. अंब्रेला फंड को डिविजन वाइज बांटने का निर्णय रेलवे द्वारा किया जाएगा।

लाभ

(i) वास्तविक में अप्रत्यक्ष रूप से अंब्रेला वर्क शून्य आधारित बजट पर कार्य करता है।
(ii) चिन्हित क्षेत्रों में निवेश किया जाता है।
(iii) जोनल रेलवे को कार्यों को प्राथमिकता देने में भी लचीलापन लाता है।

Saturday, 23 May 2020

Inventory Turnover Ratio

Inventory Turnover Ratio

  1. सेवा स्तर और सूची नियंत्रण में सुधार निरंतर सुनिश्चित करने एवं स्टॉक स्तर को अनुकूल स्तर पर रखते हुए उपयोगकर्ता विभागों को स्टोरों की उपलब्धता करवाना भंडार विभाग के महत्वपूर्ण उद्देश्यों में से एक है।
  2. इन्वेंटरी टर्नओवर अनुपात वस्तु सूची नियंत्रण के लिए दक्षता संकेतक है । स्टोर के संबंध में दक्षता प्रत्येक वर्ष 31 मार्च को स्टॉक के अनुकूल स्तर के परिणामों की गणना इन्वेंटरी टर्नओवर अनुपात से मापा जाता है।
  3. इन्वेंटरी टर्नओवर अनुपात वर्ष के अंत तक जारी की गई कुल सामग्री से अंतिम शेष को भाग देने से प्राप्त होता है। इस अनुपात को प्रतिशत के रूप में दिखाया जाता है।
  4. इससे फ्यूल और बिना फ्यूल सामग्री के अलग-अलग गणना किया जाता है । उदाहरण के लिए भारतीय रेलवे ईयर बुक 2018-19 के अनुसार इन्वेंटरी टर्नओवर अनुपात 9% (ईंधन के बिना ) और 6% (ईंधन के साथ) है।
  5. इन्वेंटरी टर्नओवर अनुपात निकालने के लिए सूत्र निम्नलिखित है:
ITR=अंतिम सामग्री शेष (31मार्च ₹ में) ×100
  वर्ष के दौरान जारी की गई सामग्री का मूल्य (₹)


Departmental Stock Verification

Departmental Stock Verification (विभागीय स्टॉक सत्यापन)

स्टोर कोड पैरा 1339 से 1343


  • वार्डों द्वारा भंडार की सही प्राप्ति और जारी करने पर एक महत्वपूर्ण "बैंक चेक" के रूप में, यह देखने के लिए एक विभागीय जांच होना आवश्यक है कि क्या बही खाते में दर्ज किसी आइटम का शेष, वास्तविक उपलब्ध स्टॉक के शेष के बराबर है अथवा नहीं।
  • डिपो अधिकारी द्वारा इस प्रकार का विभागीय सत्यापन करने की व्यवस्था लेखा विभाग द्वारा किए जाने वाले सत्यापन के अतिरिक्त होता है।
  • विभागीय सत्यापन के अंतर्गत केवल चयनित वस्तुओं को कवर करने की आवश्यकता होती है जैसे कि भारी लौह मदें, लोहे के औजार ऐसे चुनिंदा सामानों की एक सूची तैयार की जा सकती है और भंडार नियंत्रक द्वारा अनुमोदित की जा सकती है।
  • इस प्रकार का सत्यापन वार्ड प्रभारी के अतिरिक्त किसी अन्य कर्मचारी द्वारा किया जाना चाहिए। डिपो अधिकारी सत्यापन को स्थगित कर सकता है यदि स्टॉक में शेष इतना अधिक हो कि उसका सत्यापन करने के लिए स्टॉक को हटाना पड़े। ऐसा सत्यापन उस समय आसानी से किया जा सकता है जब स्टॉक की मात्रा कम हो जाए।
  • डिपो अधिकारी निम्नलिखित परिस्थितियों में सत्यापन ना करने की अनुमति दे सकता है।
(क) लेखा विभाग द्वारा पिछले 3 महीनों के अंदर संबंधित मद का सत्यापन किया गया हो।
(ख) जब भंडारों के विशेष वर्ग का लेखा सत्यापन चल रहा हो और संबंधित मध्य का अगले दो महीनों के भीतर सत्यापन किया जाना हो।
(ग) जब संबंधित मद का शेष इतना अधिक हो कि सत्यापन करने में काफी श्रम और उनको हटाने में काफी शुल्क लगे।

उन वस्तुओं की सूची, जिन का सत्यापन (ग)के तहत छूट दी गई है, डिपो अधिकारी द्वारा तैयार किया जाना चाहिए और भंडार नियंत्रक के माध्यम से भंडार लेखा अधिकारी को भेज देनी चाहिए।

सत्यापन की प्रक्रिया

किसी मद के सत्यापन के लिए तैनात किए गए अधिकारी को सत्यापन की तारीख को बहीखाता में से उस मद के शेष को लिख लेना चाहिए और फिर बाद में सत्यापन की कार्रवाई करनी चाहिए। उसे माप तोल की विवरण आदि फील्ड बुक में दर्ज कर लेना चाहिए और उस पर संबंधित वार्ड प्रभारी के हस्ताक्षर प्राप्त करना चाहिए।


स्टॉक वेरीफिकेशन शीटस

यदि स्टॉक का उपलब्ध वास्तविक शेष, खाता शेष के बराबर हो तो स्टॉक शीट बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। सत्यापन करने वाले अधिकारी केवल बहीखाता कार्ड/बीन कार्ड में एक इंट्री करेगा, यह दिखाने के लिए की आइटम का वास्तविक शेष, खाता शेष के बराबर है और उस पर अपना हस्ताक्षर करेगा तथा वार्ड के लिपिक का हस्ताक्षर होगा।

         अगर स्टॉक में अधिकता या कमी पाई जाती है तो अधिकारी द्वारा एस -1260 में सत्यापन शीट्स तैयार की जाएगी और उसका निपटारा लेखा सत्यापन सीट की भांति किया जाएगा।

      सत्यापन सीट पर वार्ड की प्राप्ति संख्या अंकित की जाएगी सत्यापन सीट को अधिकारी के हस्ताक्षर हेतु प्राप्त प्रस्तुत करने से पहले वार्ड के डिपो सामग्री अधीक्षक द्वारा पाई गई खामियों के लिए स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए और यह स्पष्टीकरण सत्यापन सीट की तीन प्रतियों पर दर्ज किया जाएगा। हालांकि स्टॉक शीट को सत्यापन के तारीख के 2 दिन बाद तक किसी भी खाते में नहीं रखा जाना चाहिए ।सत्यापन सीट को लेखा विभाग को भेजा जाएगा।

Saturday, 9 May 2020

Way leave charges

WAY LEAVE CHARGES 

पैरा 1033E

  1. भारतीय रेलवे द्वारा अन्य विभाग , प्राइवेट कंपनियों और स्थानीय नागरिकों को अपनी जमीन या ट्रैक के ऊपर या अंदर उपयोग करने के लिए जो सुविधा दी जाती है और उसके बदले जो राशि प्रभार के रूप में रेलवे के द्वारा ली जाती है उसे "वे लीव चार्ज" कहते हैं।
  2. यह रेल अधिनियम 1989 की धारा 16 और 17 के अंतर्गत शासित है जिसके अनुसार रेलवे भूमि से लगी हुई भूमि के स्वामियों और अधिभोगियों के लिए रेलों को कुछ निर्धारित कार्य करने और उनके रखरखाव के आदेश दिए गए हैं ताकि जिस भूमि से होकर रेल लाइन बिछाई गई है उसके उपयोग में रेलवे द्वारा उत्पन्न व्यवधान को दूर किया जा सके।
  3.  ऐसे कार्यों में समपार, मार्ग, नालियां, जल स्रोत आदि बनाना शामिल है। इसके अतिरिक्त निजी मकानों और निर्माणों तक मार्ग /पहुंच, जल सप्लाई और सीवर के लिए भूमिगत पाइप लाइनों, बिजली और टेलीफोन के तारों आदि के रूप में रेलवे की भूमि पर मार्गाधिकार की व्यवस्था के लिए कई बार अनुरोध प्राप्त होते हैं, कई मामलों में रेलवे संरेखण के मूल स्वरूप और विस्तार को देखते हुए यह अपरिहार्य होते हैं।
  4. वे लीव में पार्टी को भूमि के कब्जे या दखल का कोई अधिकार दिए बिना तथा रेलवे के हक, नियंत्रण और भूमि के उपयोग को किसी प्रकार प्रभावित किए बिना मार्ग आदि जैसे विनिर्दिष्ट प्रयोजन के लिए पार्टी द्वारा भूमि का सीमित उपयोग शामिल है।
  5. इस तरह के अनुरोध पर तभी विचार किया जा सकता है जब : (i)संपत्ति /मकान के लिए पहुंच का कोई अन्य रास्ता उपलब्ध ना हो (ii)किसी अन्य दिशा में जल ,सप्लाई ,बिजली सीवर  आदि की व्यवस्था न हो।
  6. वे लीव सुविधा को दिनचर्या के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए प्रत्येक मामले में साइट निरीक्षण के आधार पर विचार करना चाहिए।
  7. वे लीव सुविधाओं के लिए दरें कार्य की प्रकृति पर निर्भर करती है और रेलवे बोर्ड के दिशा निर्देश के अनुसार तय किया जाता है । उदाहरण के लिए भूमिगत पाइपलाइन के बिछाने के लिए भूमि के  बाजार मूल्य का 10% न्यूनतम 20 हजार रुपये।

अनुबंध के समय सावधानियां

  • अनुबंध में यह ध्यान रखा जाए कि पार्टी को जमीन पर कब्जे का कोई अधिकार नहीं है । इसका अर्थ हुआ की भूमि का लाइसेंस नहीं दिया जाता है बल्कि केवल सीमित उपयोग, जो करार में विस्तृत रूप से विनिर्दिष्ट किया हो ,के लिए अनुमति दी जाती है।
  • इस तरह के अनुबंध में "लाइसेंस" और "लाइसेंस फीस" जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाए बल्कि "अनुमति" और "मार्गाधिकार प्रभार" शब्दों का प्रयोग किया जाए।
  • करार में यह भी स्पष्ट रूप से तय किया जाए कि रेल प्रशासन को संबंधित पार्टी को किसी तरह का कोई नोटिस दिए बगैर किसी भी समय उस भूमि में प्रवेश करने, गुजरने और उसका प्रयोग करने का पूर्ण अधिकार है।
  • मार्गाधिकार सुविधा समाप्त हो जाने की स्थिति में उस पार्टी को न तो किसी तरह की क्षतिपूर्ति या प्रतिपूर्ति राशि के भुगतान और ना ही पहुंच मार्ग आदि के लिए वैकल्पिक व्यवस्था कराने के लिए उत्तरदायी होगा, ऐसे मामलों में उस पार्टी द्वारा बिछाई गई भूमिगत पाइप लाइनें आदि उस पार्टी को अपनी लागत पर हटानी/दूसरी जगह ले जाने होगी।

पंजीकरण शुल्क:-

आवेदन पत्र के साथ ₹20 हजार जमा शुल्क जिसे सर्वे एवं विस्तृत प्राक्कलन/वे लीव चार्ज में बाद में समायोजित कर दिया जाएगा।

प्रोसेसिंग और स्वीकृति वे लीव प्रस्ताव का


Sr.DEN(Co-ord) द्वारा संसाधित (processed) एवम मंडल रेल प्रबंधक द्वारा मंजूरी की जाएगी एवम संबंधित मंडल वित्त द्वारा सहमति ली जाएगी।

(2006W,2017-18 Expenditure)

Cost-Plus Contract


Cost-Plus-Contract(लागत-प्लस अनुबंध)

  • कॉस्ट प्लस अनुबंध एक ऐसा अनुबंध है जिसमें किसी कंपनी को खर्च के साथ-साथ  लाभ की एक विशिष्ट राशि  प्रतिपूर्ति की जाती है।
  • यह कॉन्ट्रैक्ट फ़िक्स-कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट  के विपरीत है, फिक्स कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट में दो पार्टी बिना खर्च की परवाह किए एक विशिष्ट लागत के लिए सहमत होते हैं।
  • कॉस्ट प्लस अनुबंध मुख्य रूप से खरीददार कॉन्ट्रैक्ट की सफलता के लिए कॉन्ट्रैक्टर को देती है क्योंकि ठेकेदार को आकर्षित करने वाली पार्टी मानती है कि ठेकेदार अपने वायदे पर काम करेगा और अतिरिक्त भुगतान करने से ठेकेदार लाभ कमा सकेगा।
  • यह अनुबंध कुछ हद तक सीमित किया जा सकता है जैसे कि निर्माण के दौरान ठेकेदार त्रुटि करता है तो उससे उसका लाभ नहीं दिया जा सकता है, यह अनुबंध आमतौर पर अनुसंधान और विकास गतिविधियों में उपयोग किया जाता है।


लाभ

1. यह ठेकेदार के जोखिम को कम करता है।
2. इसमें काम की गुणवत्ता पर जरा ध्यान दिया जाता है बजाय लागत पर।

हानि

1. इसमें अंतिम लागत दिखाया जाएगा क्योंकि यह पूर्व निर्धारित नहीं होता।
2. यह परियोजना की समयावधि को बढ़ा सकता है।

Friday, 8 May 2020

Negotiation


Negotiation (समझौता वार्ता)

  1. किसी समझौते पर पहुंचने के उद्देश्य से किए गए विचार-विमर्श को "निगोशिएशन" कहा जाता है।
  2. भारतीय रेलवे के वर्क्स टेंडर में बातचीत के द्वारा ठेकेदार का चयन नियम के बजाय एक अपवाद स्वरूप है, और इसका उपयोग तब किया जा सकता है जब सभी निविदाओं का मूल्य यथोचित रूप से उच्च माना जाता है और यह माना जाता है कि पुनः निविदा बुलाना रेलवे को बेहतर लाभ नहीं पहुंचा सकता है।
  3. सामान्य तौर पर एल-1 जो सबसे कम, वैद्य, योग्य और तकनीकी रूप से स्वीकार्य ठेकेदार हैं ,उसके साथ अनुबंध किया जाएगा यदि दरें अनुचित रूप से अधिक नहीं हो।
  4. यदि दरें अनुचित रूप से उच्च थी तो यह निर्णय लिया जाएगा कि पुनः निविदा आमंत्रित करना है या एल-1 के साथ बातचीत करना चाहिए ,इसका निर्धारण निविदा समिति की सिफारिश के आधार पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा लिया जाना चाहिए।
  5. सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्धारित ठेकेदार के साथ वार्ता के लिए निर्णय लेने के बाद निम्नलिखित प्रक्रियाओं को अपनाया जाना चाहिए।
(I) L-1 के अलावा अन्य निविदाकारों के साथ बातचीत की अनुमति नहीं है।
(II) आगे L-1 द्वारा मूल रूप से उद्धृत दरें, बातचीत की विफलता की स्थिति में, स्वीकृति के लिए खुली रहेगी।
(III) निविदाकारों के साथ बातचीत करने और संशोधित दर प्राप्त करने और स्वीकृति के उसी की सिफारिश करते हुए, निविदा समिति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रेलवे के वित्तीय हितों की सुरक्षा की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरी तरह देखा गया है।


नोट:- उपरोक्त निर्देशों को विशेष कार्यों या उपकरणों के लिए निविदा पर सख्ती से लागू नहीं किया जा सकता है, जहां ठेकेदार अपनी विशिष्टताओं औऱ डिजाइनों  के अनुसार विभिन्न कारणों जैसे कि प्रौद्योगिकी में सुधार आदि के लिए बोली लगा सकते हैं और उनके साथ तकनीकी और अन्य विवरणों पर चर्चा किया जा सकता है ।वार्ता की प्रक्रिया FA&CAO  के परामर्श से प्रत्येक मामलों के गुणों पर तय की जानी चाहिए।



(2012W,2015W Exp.)

Thursday, 7 May 2020

Assets Register

Assets Register(संपत्ति रजिस्टर)

  1.  20 लाख रुपए से अधिक लागत वाली इमारतों सहित सभी परियोजनाओं की निवेश लागत को संपत्ति रजिस्टर में दर्ज किया जाता है।
  2. संपत्ति रजिस्टर का रखरखाव फार्म संख्या 1720 E में किया जाता है।
  3. इमारतों के मामले में, सूचना फार्म संख्या 1977 E में इमारत रजिस्टर में डॉकेट की जाएगी।
  4. इमारतों और 20 लाख रुपए से कम की लागत वाले निर्माण को छोड़कर अन्य सभी की स्वीकृत समापन रिपोर्ट और समापन प्राक्कलन 5 वर्ष तक परिरक्षित रखा जाता है।
  5. अन्य निर्माण कार्यों की समापन रिपोर्टों को एक बार परिसंपत्ति रजिस्टर या इमारत रजिस्टर में सूचना डॉकेट हो जाने पर परिरक्षित रखने की आवश्यकता नहीं है।
  6. संपत्ति रजिस्टर में सूचना स्वीकृत समापन रिपोर्टों से दर्ज की जाती है।
  7. जब परियोजना निर्माण संगठन द्वारा निष्पादित कर ली जाती है तो रजिस्टर रिकॉर्ड के हस्तांतरण के रूप में चालू लाइन संगठन को सौंप दी जाती है ताकि वह इसे स्थाई रिकॉर्ड के रूप में रख सके।
  8. सभी परियोजनाओं को परिसंपत्ति रजिस्टर में इसलिए डॉकेट किया जाता है ताकि सूचना की पुनः प्राप्ति की सुविधा है और यदि अपेक्षित हो तो परियोजना पश्चात मूल्यांकन किया जा सके।


परिसंपत्ति रजिस्टर                                 फार्म E 1720

  1. निर्माण कार्य का नाम........................
  2. प्रारंभ होने की तारीख........................
  3. समापन की तारीख........................
  4. समापन रिपोर्ट संख्या और तारीख..............
  5. समापन रिपोर्ट को स्वीकृत करने वाले प्राधिकारी.......
  6. समापन लागत......................

नोट:- समापन लागत में उप निर्माण कार्य वार/ उप प्राक्कलन वार लागत बताई जाएगी।

7.निवेश अनुसूची
वर्ष
निवेश कि राशि

कैपिटल 
DRF    
DF
 रेवेन्यू     





जोड़







लेखा अधिकारी                                                                मंडल इंजीनियर


(महत्वपूर्ण प्रश्न एक्सपेंडिचर विषय के लिए)
2006WO,2012W,2016W,2017-18


Saturday, 2 May 2020

Surveys

सर्वेक्षण (Surveys)

  1. रेलवे नई लाइन, गेज परिवर्तन, दोहरीकरण एवं अन्य यातायात सुविधाओं को विकसित करने से पहले विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षण करते हैं।
  2. इस सर्वेक्षण में भौगोलिक क्षेत्र की जांच, उस क्षेत्र के बारे में जानकारी इकट्ठा करना एवं उस क्षेत्र के विवरण का रिकॉर्ड किया जाता है।
  3. ये विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षण निम्नलिखित है 
  4. (i)यातायात सर्वेक्षण (Traffic Survey)
         (ii)टोह सर्वेक्षण (Reconnaissance  Survey)
         (iii)प्राथमिक सर्वेक्षण (Preliminary Survey)
         (iv)अंतिम स्थान सर्वेक्षण (Final location Survey)

(i) यातायात सर्वेक्षण :

यातायात सर्वेक्षण यह एक विस्तृत अध्ययन है जो इसलिए किया जाता है कि नई लाइनों के मामले में यातायात की संभावनाओं की भविष्यवाणी की जा सके ताकि सर्वाधिक आशाजनक मार्ग के प्रोजेक्शन में सुविधा हो तथा बनाई जाने वाली लाइन की कोटी निर्धारित की जा सके। साथ ही इसलिए भी कि मौजूदा लाइन पर यातायात की मात्रा का आकलन किया जा सके और यह निर्धारित किया जा सके कि उस लाइन पर कौन-कौन सी यातायात सुविधाएं देनी होगी। यह सर्वेक्षण टोह या प्रारंभिक इंजीनियरी सर्वेक्षणों के साथ साथ किए जाएंगे ताकि सिफारिशें बनाते समय वैकल्पिक प्रस्तावों की तकनीकी व्यवहारिकता तथा लागत को ध्यान में रखा जा सके।


यातायात सर्वेक्षण किसी क्षेत्र या खंड की यातायात संबंधी परिस्थितियों के विस्तृत अध्ययन का नाम है, जो नई लाइन परियोजनाओं, फिर से बिछाए जाने वाली लाइनों ,अमान परिवर्तन योजनाओं ,दोहरी लाइन बिछाने के कार्यों या लाइन की क्षमता से संबंधित अन्य बड़े कार्यों की यातायात संभाव्यता और वित्तीय फलितार्थों का आकलन के लिए किया जाता है।

किसी परियोजना के आर्थिक अध्ययन के बाद ही इस नई परियोजित रेलवे लाइनों या अमान परिवर्तन आदि के बारे में निर्णय लिया जा सकता है। यातायात सर्वेक्षण में यह आकलन करने की कोशिश की जाती है कि पूर्व कल्पनीय भविष्य में कुल कितना यातायात पैदा होने की संभावना है और यह आकलन केचमेंट एरिया तथा रेल और सड़क के बीच कुल यातायात के विभाजन के विशेष संदर्भ में किया जाता है।

अर्जन और संचालन व्यय की संगणना परियोजना के आर्थिक जीवन जोकि 30 वर्ष माना जा सकता है के प्रत्येक वर्ष के लिए की जानी चाहिए ,ताकि वार्षिक नकदी प्रवाह तकनीक (DCF Technique) लागू करते हुए परियोजना का मूल्यांकन करके यह देखा जा सके कि क्या इससे 10% का न्यूनतम स्वीकार्य प्रतिफल मिल जाएगा।

यातायात (वाणिज्य या परिचालन) विभाग के किसी अनुभवी प्रशासी अधिकारी को यातायात सर्वेक्षण का काम नियमतः सौंपा जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए की प्रत्याशित यातायात ,पूंजी लागत और आवर्ती खर्चे (Recurring expenses)  के प्राक्कलन वास्तविक है और परियोजना का वित्तीय मूल्यांकन , प्रत्येक चरण पर निवेश और प्रतिफल के फेजिंग सहित ,यथासंभव सही-सही और काफी वस्तु निष्ठा के साथ किया जाए ,उपयुक्त हैसियत प्रवर वेतनमान (Senior-scale) या प्रशासी ग्रेड (Administration Grade) के किसी लेखा अधिकारी को, जिसे यातायात लागत निर्धारण का अनुभव हो, शुरू से ही यातायात सर्वेक्षणअधिकारी के साथ सहयोजित कर देना चाहिए और वह सर्वेक्षण दल के साथ मिलकर काम करेगा। परियोजना के इंजीनियरी सर्वेक्षणों के इंचार्ज मुख्य इंजीनियर परियोजना के यातायात सर्वेक्षण के समग्र इंचार्ज भी होंगे और यातायात सर्वेक्षण की रिपोर्ट उनके सामान्य मार्ग निर्देशन में तैयार की जाएगी ताकि सुनिश्चित हो सके सबसे अधिक किफायती प्रस्ताव तैयार किए गए हैं। रेल प्रशासन द्वारा यातायात सर्वेक्षण दल को जो  विचारार्थ विषय सौंपे जाए उनमें यह हिदायत भी दी जाए की किस किस्म के अन्वेषण किए जाएंगे और उनका दायरा क्या होगा। यातायात सर्वेक्षण दल को भी चाहिए कि फील्ड में कार्य होते समय और अवकाश की अवधि में भी समय-समय पर मुख्यालय जाते रहे ताकि वे महाप्रबंधक से और अन्य प्रधान अधिकारियों से परामर्श कर सके और आवश्यकता होने पर मूल विचारार्थ विषयों ,समर्थ प्राधिकारी से अशोधित कर सके। यह इसलिए आवश्यक है कि मुख्य लाइन प्रशासन अन्वेषणअधीन नई लाइन आदि के अभिकल्प निर्धारित कर सकें।

(ii)टोह सर्वेक्षण (Reconnaissance Survey)


"टोह" शब्द का अर्थ है किसी क्षेत्र के ऐसे सभी रफ और रैपिड इन्वेस्टिगेशन (स्थूल और द्रुत अन्वेषण)जो किसी परियोजित रेलवे लाइन के एक अथवा अधिक मार्गों की तकनीकी व्यवहारिकता तथा अनुमानित लागत (approximate cost) मालूम करने के लिए किए जाए। ये अन्वेषण, फील्ड में अधिक सावधानीपूर्वक अन्वेषण किये बिना, भारतीय सर्वेक्षण विभाग के कंटूर मानचित्रों और अन्य उपलब्ध सामग्री की सहायता से की जानेवाली साधारण जांच के आधार पर किये जाते हैं और उनमें केवल ऐसे उपकरणों का उपयोग किया जाता है जिनसे अनुमानित दूरियां तथा ऊंचाइयों द्रुत गति से मालूम किया जा सके।

इस सर्वेक्षण में निम्नलिखित जानकारी एकत्रित की जाती है।

(i) हिल्स घाटियों में  पानी का क्षेत्र, जलवायु द्वीप आदि जैसे क्षेत्रों की विशेषताएं।
(ii) मिट्टी की प्रकृति
(iii) क्षेत्र में नदियों की धारा ,उनकी अनुमानित चौड़ाई ,गहराई आदि
(iv) पहाड़ियों एवं झीलों की स्थिति

इस सर्वेक्षण में बैरोमीटर, प्रिजमेटिक कम्पास, द्वीपदीय दूरबीन पेडोमीटर उपकरण की आवश्यकता होती है।

जहां उपयुक्त आकाशी फोटोग्राफ उपलब्ध हो वहां यथा अपेक्षित उपकरणों द्वारा क्षेत्र अन्वेषण से फोटोग्राफी के त्रिविमीय अध्ययनों और स्थल निरीक्षणों से  पर्याप्त रूप से बचा जा सकता है उन्हें छोड़ा जा सकता हैं।

(iii) प्रारंभिक सर्वेक्षण (Preliminary Survey)

इस सर्वेक्षण में उस मार्ग अथवा उन मार्गों की विस्तृत उपकरणनिय जांच की जाती है जो "टोह सर्वेक्षण" के परिणाम स्वरूप चुने गए हो ताकि इस सर्वेक्षण के अधीन परियोजित लाइन की निकटतम संभावित लागत का अनुमान लगाया जा सके। यातायात सर्वेक्षण के साथ इस सर्वेक्षण पर विचार करके जो परिणाम निकले सामान्यतः उसी से यह निश्चय किया जाएगा की लाइन बनाई जाए अथवा नहीं। किंतु निर्माण प्रारंभ करने से पूर्व रेलवे बोर्ड अंतिम मार्ग निर्धारण सर्वेक्षण पर आधारित प्राक्कलन की मांग कर सकता है । प्रारंभिक सर्वेक्षण अधिक परिशुद्धता के साथ किया जाना चाहिए क्योंकि अंतिम मार्ग के संरेखण इस पर निर्भर करता है।

(iv)अंतिम स्थान-निर्धारण सर्वेक्षण (Final location survey)


अंतिम मार्ग निर्धारित सर्वेक्षण, सामान्यतः ये क्रम में नहीं होता है। इसे अंतिम रूप से रेलवे बोर्ड द्वारा तय किया जाता है कि लाइन का निर्माण होगा अथवा नहीं तब ये सर्वेक्षण किया जाता है ।अंतिम मार्ग निर्धारण में अपेक्षित कार्य तथा प्रारंभिक सर्वेक्षण में अपेक्षित कार्य के बीच मुख्य अंतर यह है कि अंतिम मार्ग निर्धारण सर्वेक्षण के दौरान अंतिम रूप से चुने गए संरेखण (alignment) में जमीन पर ,थियोडोलाईट और/या इलेक्ट्रॉनिक दूरी मापक उपकरणों से पूरी तरह खूंटी लगा दिए जाने चाहिए, रिपोर्ट पूर्ण होनी चाहिए तथा विस्तृत नक्शे एवं सेक्शन प्रस्तुत किए जाने चाहिए।


इंजीनियरी संहिता अध्याय दो एवं तीन

Material Modification (महत्वपूर्ण आशोधन)


Material Modification (महत्वपूर्ण आशोधन) पैरा 1109-1113 ई एवं ACS-59 


महत्वपूर्ण आशोधन किसी कार्य या योजना के प्रकृति में परिवर्तन करने का प्रतिनिधित्व करता है जो सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्वीकृत होता है।

किसी स्वीकृत निर्माण कार्य अथवा योजना में, प्राक्कलन को स्वीकृति देने वाले प्राधिकारी के पूर्व अनुमोदन के बिना ,किसी महत्वपूर्ण आशोधन की ना तो अनुमति दी जानी चाहिए और ना किया जाना चाहिए। 

एडवांस करेक्शन स्लिप 59 E के तहत निम्नलिखित  मैटेरियल मोडिफिकेशन नहीं होगा।

(अ) रेलवे बोर्ड द्वारा जारी नीति के कारण उत्पन्न होने वाले निम्लिखित कार्यों के विनिर्देशों या मानको में परिवर्तन-
(I) कंस्ट्रक्शन
(II) इंटरलॉकिंग
(III) इलेक्ट्रिफिकेशन
(IV)ट्रैक्शन
(V) SOD आवश्यकता

(ब) स्वीकृत यार्ड वर्क के कार्य को पूरा करने के दौरान कार्य को पूरा करने के लिए माइनर मोडिफिकेशन।

(स) वैधानिक/नियामक आवश्यकताओं के परिणामस्वरूप होने वाले संशोधन।

(द) निर्माण में मितव्ययता लाने और परियोजना की समय पर डिलीवरी के लिए संशोधन।

(ई) परियोजना को पूरा करने के लिए आवश्यक कोई भी कार्य।


* निम्नलिखित को मैटेरियल मोडिफिकेशन के रूप में माना जाएगा:-

कोई भी कार्य जो स्वयं स्वतंत्र कार्य है, लेकिन अनिवार्य रूप से मौजूदा कार्य के साथ किया जाना आवश्यक है, उसे मौजूदा कार्य में मैटेरियल मोडिफिकेशन के रूप में माना जाएगा, बशर्ते कि यह मौजूदा कार्य के साथ सीधे जुड़ा हो। इसकी मंजूरी बोर्ड द्वारा समय-समय पर जारी शक्तियों के प्रत्यायोजन के अनुसार होगी।


*रेलवे बोर्ड द्वारा स्वीकृत परियोजना जो महत्वपूर्ण आशोधन से भिन्न हो किसी आशोधन की मंजूरी महाप्रबंधक या किसी निम्नतम प्राधिकारी द्वारा दी जा सकती है बशर्ते की आशोधन के लिए किसी अतिरिक्त व्यय की आवश्यकता पड़ती है तो वह रकम उसकी स्वीकृति की शक्तियों से अधिक ना हो जाए।

महत्वपूर्ण आशोधन की स्वीकृति:

यदि रेलवे बोर्ड द्वारा स्वीकृत किसी परियोजना में , यदि निर्माण कार्य के वस्तुतः प्रारंभ होने के पूर्व किसी महत्वपूर्ण आशोधन को शामिल करना आवश्यक हो जाता है तो परियोजना का एक संशोधित संक्षिप्त प्राक्कलन तैयार करके रेलवे रोड के अनुमोदनार्थ प्रस्तुत किया जाना चाहिए। जब रेलवे बोर्ड अथवा उससे ऊंचे प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत किसी परियोजना में , निर्माण कार्य की प्रकृति के दौरान , किसी महत्वपूर्ण आशोधन को शामिल करना आवश्यक हो जाए तब तक संशोधित संक्षिप्त प्राक्कलन रेलवे बोर्ड को प्रस्तुत किया जाना चाहिए भले ही उसके फलस्वरूप स्वीकृत प्राक्कलन की राशि में कोई आधिक्य होने की संभावना ना भी हो। जब तक प्रस्तावित आशोधन को रेलवे बोर्ड का अनुमोदन प्राप्त ना हो जाए तब तक उस आशोधन पर ना तो कोई देयता उपगत की जानी चाहिए और ना ही बचत को , यदि इसके शामिल किए जाने में बचत होने की संभावना हो ,किसी अन्य प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाना चाहिए।

कोई ऐसा आशोधन जो विशुद्ध इंजीनियरिंग कारणों से आवश्यक हो और व्यय ₹10000 से कम हो तो कार्यपालक इंजीनियरों को साधारणतः ऐसे आशोधन के प्रस्ताव को उच्चतर प्राधिकारी को भेजने की जरूरत नहीं है।


(2010WO,2016WO,2017-18W)



Friday, 1 May 2020

IRFC (INDIAN RAILWAY FINANCE CORPORATION)

IRFC-INDIAN RAILWAY FINANCE CORPORATION

भारतीय रेलवे वित्त निगम

  •  दिसंबर 1986 में पब्लिक लिमिटेड कंपनी के रूप में आईआरएफसी की स्थापना की गई थी।
उद्देश्य- रेल मंत्रालय के योजनागत परिव्यय के लिए आंशिक वित्तपोषण करना तथा उसकी विकास समान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बाजार से धनराशि प्राप्त करना है।

रेलवे को इस उपार्जन से अपने यातायात आउटपुट में वृद्धि एवं राजस्व वृद्धि में सहायता मिलती है।

  • आईआरएफसी का एकमात्र ग्राहक भारतीय रेलवे है।
  • आईआरएफसी बांड जारी करके बैंक/वित्तीय संस्थानों से कैपिटल गैन बॉन्ड ,सावधिक ऋण तथा बाहरी वाणिज्यिक उधार/निर्यात क्रेडिट आदि के माध्यम से धनराशि एकत्रित करती है।
  • आईआरएफसी रोलिंग स्टॉक रेल परियोजनाओं के लिए वित्त पोषण करती है एवं रेलवे को पट्टे पर देती है।
  • इस कंपनी ने 31 मार्च 2019 तक रेलवे को 195626 करोड़ रुपए मूल्य की चल स्टॉक परिसंपत्ति पट्टे पर दी है ।31 मार्च 2019 तक रेल परियोजनाओं को ₹58715 करोड़ रुपए वित्त पोषित किया है।2018-19 में पट्टा किराया 11.208% प्रतिवर्ष  आईआरएफसी द्वारा कर दिया गया है।मंत्रालय नियमित रूप से पट्टे का भुगतान करती है।
  • आईआरएफसी का निरंतर लाभ अर्जित करने में रिकॉर्ड रहा है ।इसने अबतक 3324 करोड़ रुपया लाभांश का भुगतान किया है इसकी सुदृढ़ वित्तीय स्थिति और स्थाई साख के आधार पर इसमें तीन प्रमुख घरेलू क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों से उच्चतम रेटिंग और चार प्रमुख अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों से सम्प्रभुता के समतुल्य निवेश ग्रेड प्राप्त किया है।

आईआरएफसी का लीज टर्म

  • लीज पीरियड 30 वर्ष का होता है।
  • आईआरएफसी संपत्ति को मानक लीज अनुबंध के आधार पर रेलवे को देती है।
  • भारतीय रेल प्रत्येक छमाही में लीज रेंट का भुगतान करती है।
  • 30 वर्ष के बाद रोलिंग स्टॉक,परिसंपत्तियों को भारतीय रेलवे को नॉमिनल दर पर बेच सकती है।

आईआरएफसी लीज चार्ज-लेखांकन पॉलिसी

  • 2005 से पहले IRFC के लीज चार्ज जिसमें प्रिंसिपल और ब्याज शामिल होता है जो IRFC को भुगतान किया जाता था, मांग संख्या 09-Abstract-G Operating Expenses Traffic को प्रभावित (charge) किया जाता था।
  • 2005 के बाद लेखांकन नीति में बदलाव किया गया है अब IRFC को जो लीज प्रभार दिया जाता है।

प्रिंसिपल घटक-प्लान हेड 2200 लीज Assets (Demand No.-16)

ब्याज घटक -मांग संख्या 09-Abstract-G Operating Expenses traffic

  • इसके फलस्वरूप OWE(Ordinary Working Expenses) में कमी आई है।