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Friday, 18 September 2020

Lease and License

 Lease & License


लीज और लाइसेंस-


लीज:- 1.उपयोगकर्ता एवं मालिक के बीच एक समझौता है जिसमें उपयोगकर्ता संपत्ति के उपयोग के बदले में एक निर्धारित किराया का भुगतान करता है।


2. संपत्ति अधिनियम 1882 के हस्तांतरण की धारा 105 के अनुसार "पूर्व निर्धारित समय तक संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार" सम्पत्ति के मालिक द्वारा संपत्ति के उपयोगकर्ता को दी जाती है।


लाइसेंस:- 1. लाइसेंस के बिना किसी तीसरे पक्ष द्वारा बौद्धिक संपदा का उपयोग करना नियम का उल्लंघन है।

2. भारतीय सुविधा अधिनियम 1882 की धारा 52 के अनुसार लाइसेंस,लाइसेंसधारक को संपत्ति के किसी भी हिस्से पर कब्जा करने का अधिकार नहीं देता है बल्कि सीमित अवधि के लिए संपत्ति का उपयोग करने की अनुमति देता है।




लीज

लाइसेंस

  1. पार्टी - मालिक और उपयोगकर्ता

1.पार्टी - लाइसेंसर (जिसने अनुमति दी), लाइसेंसी (जिसे अनुमति दी गई)

  1. एक समय अवधि के लिए पट्टेदार को संपत्ति के अधिग्रहण की अनुमति देता है।

2. लाइसेंसधारी को इस प्रकार की कोई अनुमति नहीं दी जाती है। 

  1. यह अपरिवर्तनीय है, अर्थात अनुबंध पूरा होने से पहले उसको रद्द नहीं किया जा सकता है।

3. लाइसेंसधारी की इच्छा पर समझौता को पूरा होने से पहले रद्द किया जा सकता है।

  1. इसे लीज रेंट के रूप में जाना जाता है।

4. इसे लाइसेंस फी के रूप में जाना जाता है।

  1. यह हस्तांतरणीय है अर्थात पट्टेदार तीसरे पक्ष को पट्टा हस्तांरित कर सकता है।

5. यह अहस्तांतरणीय है।

  1. उपयोगकर्ता कोई भी सुधार संपत्ति में कर सकता है।

6. लाइसेंसधारी कोई भी सुधार संपत्ति में नहीं कर सकता है।

  1. पट्टेदार के मृत्यु होने पर करार समाप्त नहीं होता है।

7.  इसमें समाप्त हो जाता है।


Sunday, 26 July 2020

Special limited tender


Special Limited Tender

विशेष सीमित निविदा


स्पेशल लिमिटेड टेंडर निम्नलिखित परिस्थितियों में FA&CAO के सहमति से अपनाया जा सकता है-

  • स्पेशल प्रकृति के कार्य (PHOD के सहमति से)
  • तत्काल प्रकृति के कार्य ( महाप्रबंधक के व्यक्तिगत अनुमोदन से)
  • कंसल्टेंसी कार्य (महाप्रबंधक के व्यक्तिगत अनुमोदन से)

स्पेशल लिमिटेड टेंडर के लिए विशिष्ट एवं ख्याति प्राप्त ठेकेदार/संस्था/एजेंसी को कार्य करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

स्पेशल लिमिटेड टेंडर के लिए परिस्थितियों और आवश्यकता के बारे में विस्तार से एक प्रस्ताव तैयार करना चाहिए एवं PHOD की व्यक्तिगत स्वीकृति प्राप्त होने से पहले FA&CAO (ओपन लाईन) FA&CAO/C (निर्माण संगठन) से स्वीकृति प्राप्त करना चाहिए।


निविदाएं जिसके लिए स्पेशल लिमिटेड टेंडर आमंत्रित की जानी है उसमें 6 से अधिक ठेकेदार होनी चाहिए किंतु 4 से कम नहीं होनी चाहिए। ठेकेदार अनुमोदित सूची का ही हो यह आवश्यक नहीं है।

Thursday, 18 June 2020

Difference between Vetting and concurrence


Difference between Vetting and Concurrence.


वेटिंग:-

किसी भी स्टेटमेंट के आंकड़े (figures) की तथ्यात्मक शुद्धता की जांच को "वेटिंग" कहा जाता है।वेटिंग को दूसरे शब्दों में पुनरीक्षण या स्क्रूटिनी भी कहा जाता है। किसी भी प्रस्ताव की सावधानीपूर्वक और महत्वपूर्ण परीक्षण किया जाता है।उदाहरण के लिए वेटिंग ब्रीफिंग नोट्स,प्राक्कलन,खरीद आदेश आदि का किया जाता है।

Concurrence (कंकरेन्स)

कंकरेन्स अर्थात सहमति कार्यकारी अधिकारी द्वारा दिये गए प्रस्ताव जिसमें आँकड़े भी संदर्भित रहता है से वित्त विभाग की सहमति।
     यानी कोई भी प्रस्ताव पर सहमत होना ही कंकरेन्स है।उदाहरण के लिए नए पुलों का निर्माण,मशीनरी के प्रतिस्थापन आदि 

Monday, 8 June 2020

CIPS


CIPS 

  • पूर्ण रूप -CIPS-Centralized Integrated Payment System (केंद्रीकृत एकीकृत भुगतान प्रणाली)
  • CIPS एक एकीकृत भुगतान प्रणाली है जिसके माध्यम से IPAS के जरिये ठेकेदार/कर्मचारी के बिल/वेतन आदि का भुगतान किया जाता है।
  • इसे CRIS (Centre for Railway Information Systems) ने विकसित किया है ।पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसे COFMOW (Central Organization of Modernization of Works) में लागू किया गया जो सफल रहा पुनः इसे पूरे भारतीय रेलवे में लागू कर दिया गया है।
  • इसके लिए रेलवे का बैंकिंग पार्टनर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया है।
  • इसके संयोजक उत्तर रेलवे है।
  • CIPS को IPAS से जोड़ा गया है।
  • इसके लिए प्रत्येक जोनल रेलवे चेक हस्ताक्षर करने वाले अधिकारियों को IPAS पर पंजीकृत कर सकता है , प्रत्येक अधिकृत हस्ताक्षरकर्ताओं को एक डिजिटल KEY  मिलेगा जिसे IPAS पर पंजीकृत करना होगा एवं उस चाबी को हस्ताक्षकर्ता  बैंक को एडवांस में शेयर कर सकता है।

CIPS के लाभ

  • चेक का डाटा IPAS से बैंक सर्वर में सीधे भेज दिया जाता है।
  • इससे फ्रॉड को रोका जा सकता है क्योंकि पहले के सिस्टम में चेक का डाटा IPAS से डाउनलोड कर बैंक सर्वर में अपलोड किया जाता था तो डाटा के साथ चालाकी किया जा सकता था किंतु CIPS में डाटा सीधे IPAS के सर्वर से ही बैंक के सर्वर में भेजा जाता है एवं डाटा को मॉडिफाइड नहीं जा सकता है सिर्फ देखा जा सकता है।

Sunday, 7 June 2020

IRPSM


IRPSM 


(i) IRPSM :-Indian Railways Projects Sanctions & Management.
(ii) यह एक वेब आधारित प्रोग्राम है जिसे CRIS (Center for Railway Information Systems) द्वारा विकसित किया गया है।
(iii) इस प्रोग्राम के दो व्यापक क्षेत्र है (i) नई परियोजनाओं की मंजूरी अर्थात वर्क्स प्रोग्राम (ii) ऐसे स्वीकृत परियोजनाओं का प्रबंधन और निगरानी।

IRPSM के उद्देश्य

  • जोनल रेलवे और उत्पादन यूनिटों द्वारा जो भी "नए वर्क्स प्रस्ताव" (New Works Proposal) है उसे ऑनलाइन तैयार कर रेलवे बोर्ड को भेजने की सुविधा प्रदान करता है।
  • "वर्क्स इन प्रोग्रेस" को संशोधन कर रेलवे बोर्ड भेजने की सुविधा प्रदान करता है।
  • जब कार्य रेलवे बोर्ड में स्वीकृत हो जाता है तो वर्क्स प्रोग्राम, पिंक बुक और अन्य स्वीकृत बुक को प्रिंटिंग की सुविधा प्रदान करता है।
  • इसके अतिरिक्त ऐसे सभी परियोजनाओं के प्रभावी प्रबंधन और निगरानी से जुड़ी सभी गतिविधियों को कार्यकारी अधिकारियों जैसे Sr.DOM,Sr.DEN के लिए मासिक अपडेशन की भी सुविधा प्रदान करता है।

IRPSM मंडल स्तर पर

  1. नए वर्क्स प्रस्तावों का निर्माण साथ ही कार्य का जस्टिफिकेशन (औचित्य) एवं सार लागत।
  2. वेटिंग के लिए वित्त विभाग  (Sr.DFM) को भेजना।
  3. डीआरएम द्वारा प्रस्ताव की मंजूरी (यदि DRM के पावर के तहत है तो)
  4. प्रस्ताव यदि डीआरएम के (शक्ति) पावर से ज्यादा है तो जोनल रेलवे को प्रस्ताव भेजना।
  5. डीआरएम के पावर के तहत स्वीकृत कार्यों को IRPSM  में इन प्रोग्रेस कार्य में जोड़ना।
  6. यूनिक प्रोजेक्ट आईडी असाइन करना।
  7. कार्यकारी एजेंसी द्वारा प्रत्येक कार्य के लिए स्थिति की रिपोर्टिंग करना।
  8. निर्माण कार्यक्रमों रिपोर्ट को जनरेट एवं प्रिंट करना।

IRPSM क्षेत्रीय स्तर पर 

  1. मंडलों से प्राप्त "नए कार्यों" प्रस्तावों का परीक्षण एवं प्रसंस्करण CPDE (Chief Planning & Designs Engineer) द्वारा किया जाएगा पुनः संबंधित जोनल प्लान हेड कोऑर्डिनेटर को अग्रेषित करना।
  2. नए कार्यों प्रस्तावों का निर्माण।
  3. वेटिंग के लिए वित्त (FA&CAO) को अग्रेषित करना।
  4. वेट किए गए प्रस्तावों को प्लान हेड कॉर्डिनेटर द्वारा जांच की जाएगी और फिर PCE (Principal Chief Engineer) के माध्यम से महाप्रबंधक को भेजी जाएगी।
  5. प्रस्ताव की स्वीकृति महाप्रबंधक द्वारा दी जाएगी यदि उनके शक्ति के तहत है तो।
  6. यदि प्रस्ताव महाप्रबंधक के शक्ति के तहत नहीं है तो प्रस्ताव को रेलवे बोर्ड मंजूरी के लिए भेजी जाएगी।
  7. महाप्रबंधक के शक्तियों के तहत स्वीकृत सभी कार्यों को आईआरपीएसएम में इन प्रोग्रेस वर्क्स सूची में जोड़ना।
  8. एक आईडी असाइन करना।
  9. जोनल रेलवे मुख्यालय एवं मंडलों के लिए फंड की उपलब्धता एवं स्वीकृति की सीमा निर्धारित करना।
  10. संबंधित कार्यकारी एजेंसी द्वारा प्रत्येक कार्य के लिए हर महीने स्थिति की रिपोर्टिंग करना।
  11. वर्क्स। प्रोग्राम को जनरेट एवं प्रिंट करना (यदि आवश्यक है तो)।

IRPSM रेलवे बोर्ड स्तर पर


  1. क्षेत्रीय रेलवे से प्राप्त कार्य प्रस्ताव को EDCE(G) द्वारा संबंधित योजना प्रमुखों के नोडल निदेशालय को अग्रेषित करना।
  2. कार्यों का ऑनलाइन शॉर्टलिस्टेड सिफारिश और अग्रेषित करना  EDCE(G) को।
  3. 5 करोड़ से ज्यादा के कार्य प्रस्ताव को नोडल निदेशालय द्वारा वित्तीय सहमति के लिए EDF(X)-I & II को अग्रेषित करना।
  4. 5 करोड़ से नीचे वाले कार्यों को ऑनलाइन शॉर्टलिस्टिंग, सिफारिश एवं नोडल निदेशालय द्वारा संबंधित प्लान हेड्स  के AM (Additional Members) के मार्फत EDCE(G) को अग्रेषित करना।
  5. सभी चुने गए प्रस्तावों का संकलन (5 करोड़ से नीचे वाले कार्य) AM समिति की बैठक में EDCE(G) द्वारा।
  6. किसी भी समय ऑनलाइन येलो स्लीप अटैच किया जा सकता है एवं फाइल को परामर्श के लिए चलाया जा सकता है । सभी येलो स्लीप संचार को सामान्य रिकॉर्ड के लिए रखा जाएगा ऑफ द रिकॉर्ड प्रस्ताव पर परामर्श के प्रावधान के लिए।
  7. सभी शॉर्टलिस्टेड और अनुशंसित प्रस्तावों को ऑनलाइन सहमति और वित्त की टिप्पणी के साथ प्रत्येक प्लान हेडस के लिए नोडल निदेशालय द्वारा EDCE(G) के माध्यम से बोर्ड एवं माननीय रेल मंत्री के पास अनुमोदन के लिए भेजा जाएगा।
  8. यूनिक परियोजना आईडी असाइन किया जाएगा।

यूनिक परियोजना आईडी 14 डिजिट का होता है।

1
2
3
4
5
6
7
8
9
10
11
12
13
14
जोनल रेलवे

मंडल

प्लान हेड्स

स्वीकृति वर्ष

स्वीकृति अधिकारी जैसे DRM, GM
कार्यकारी एजेंसी जैसे Sr. DEN आदि
क्रमांक संख्या


IRPSM के लाभ

  • सभी फाइल ऑनलाइन होने से पेपरलेस कार्य।
  • एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय में फाइल जाने में समय की बचत, प्रस्ताव कुछ ही समय में ही बोर्ड कार्यालय पहुंच जाता है।
  • सभी जस्टिफिकेशन, प्लान, ड्रॉइंग, स्वीकृति प्रस्ताव के साथ अटैच।
  • सभी work-in-progress कार्य का ऑनलाइन मॉनिटरिंग।

Saturday, 6 June 2020

IR-WCMS

IR-WCMS (Indian Railways Works Contract Management System) भारतीय रेलवे अनुबंध प्रबंधन प्रणाली


  • यह वेब आधारित प्रोग्राम है जिसे CRIS द्वारा विकसित किया गया है जिसे IRCEP (Indian Railways Civil Engineering Portal) पर होस्ट किया गया है।
  • पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसे भारतीय रेलवे के 17 मंडलों में शुरू किया गया था वर्तमान में इंजीनियरिंग विभाग के सभी कार्यों के लिए जो 01.05.2020 से शुरू होगा भारतीय रेलवे के सभी मंडलों पर लागू किया गया है।
  • ठेकेदारों को भुगतान करने के लिए IPAS के साथ एवं डेटा को लाने के लिए IREPS (Indian Railways Electronic Procurement System) के साथ IR-WCMS जुड़ा हुआ है।


कवर 

अनुबंध से जुड़ी सभी गतिविधियों जो परस्पर शामिल है निम्नलिखित है।
(i) परफॉर्मेंस गारंटी प्रस्तुत करना।
(ii) कांट्रैक्ट एग्रीमेंट को तैयार करना एवं हस्ताक्षर करना।
(iii) भुगतान के लिए आई पास के साथ बिलिंग और उसका एकीकरण।
(iv) नन-स्टॉक आइटम को तैयार करना एवं स्वीकृति देना।
(v) वेरिएशन स्टेटमेंट की तैयारी एवं मंजूरी।
(vi) DOC (Date of Completion) का विस्तार
(vii) PG/SD रिलीज करना
(viii) रेलवे और ठेकेदारों के बीच पत्राचार


           यह ई मॉड्यूल जोनल कॉन्ट्रैक्ट (क्षेत्रीय ठेकों) के लिए भी विकसित किया गया है।

IR-WCMS निम्नलिखित के लिए लागू नहीं है।

1.ठेकेदार के माप (contractor's measurements) के प्रावधान वाले अनुबंध।
2. कंपोजिट अनुबंध जिसमें इलेक्ट्रिक एवं एस & टी कार्य शामिल है।
3. ऐसे अनुबंध जिसमें ठेकेदारों को अग्रिम जारी करने का प्रावधान हो।

हालांकि उपरोक्त दिए गए मॉड्यूल भी डेवलप के तहत है और जल्द ही लॉन्च किए जाएंगे।

● IR-WCMS सिर्फ नए कार्य पर लागू है जो कार्य पहले से चल रहा है उसे मैनुअल रूप से ही चलाया जाएगा।


छूट :- डीआरएम के व्यक्तिगत अनुमोदन होने पर कारणों को दर्शाते हुए IR-WCMS से छूट दी जा सकती है।

● किसी भी परिस्थिति में कार्य अनुबंध IR-WCMS और मैन्युल दोनों पर हैंडल नहीं किया जा सकता है।

●निविदा समिति की कार्यवाही और LOA केवल IREPS के माध्यम से किया जाएगा बाद में इसे IR-WCMS पर इम्पोर्ट किया जा सकता है।


Monday, 1 June 2020

Out of Turn Works (OOT WORKS)

Out of Turn Works(OOT WORKS)


परिभाषा:-

ऐसे कार्य जो वर्तमान वर्ष के कार्य में शामिल किया जाता है, परंतु वह कार्य न तो वर्तमान वर्ष के कार्य में स्वीकृत रहता है एवं न तो पिछले वर्ष के स्वीकृत कार्यों में शामिल रहता है।
            दूसरे शब्दों में ऐसे कार्य जिन्हें बजट बनाते समय ऊंची प्राथमिकता नहीं दी जाती है और बजट में शामिल भी नहीं किया जाता है । किंतु यदि बाद में कार्यों को करवाने की आवश्यकता होती है तो उसे आउट ऑफ टर्न वर्क्स में शामिल किया जाता है।

कार्यान्वयन प्राधिकरण(Execution authority)

इस तरह के कार्यों को शुरू करने के लिए आवश्यक जस्टिफिकेशन देना चाहिए साथ ही यह भी बताना चाहिए कि इसे पिंक बुक/लॉ बुक में क्यों शामिल नहीं किया गया।

फण्ड- इस तरह के कार्य के लिए फंड की व्यवस्था उसी प्लान हेड के अंतर्गत पुनर्विनियोग  से किया जाएगा यानी जिस प्लान का OOT कार्य है।

  • CPDE-Chief Planning & Design Engg./CE/P&D-OOT कार्य के लिए नोडल अधिकारी होंगे (जोन में)
  • वित्तिय सहमति PFA/Sr.DFM से ली जाएगी जैसे भी कार्य हो,यानी मंडल स्तर पर Sr.DFM से एवम क्षेत्रीय स्तर पर PFA से ली जाएगी।
यात्री सुविधाओं वाले कार्य:-
(i) महत्वपूर्ण एवम टिकाऊ तथा स्थायी प्रकृति की सुविधाएं वाले कार्य को महत्व देना चाहिए।
(ii) फण्ड को फिनिशिंग वाले कार्य पर व्यय नहीं करना चाहिए।

सेफ्टी कार्य:-इस तरह के कार्य आठ महीनों में समाप्त हो जाना चाहिए।

* यातायात सुविधाओं वाले कार्य के लिए PCOM से मंजूरी लेनी चाहिए।

SOP

प्लान हेड्स
स्वीकृति शक्ति
Remarks

GM
DRM

5300-Passenger & other amenities.
2.5 cr. per case
2.5 cr. per case
वार्षिक लिमिट -25 cr नन सेफ्टी आइटम के लिए (सेफ्टी वर्क्स में यह लिमिट लागू नहीं है)
5200-staff amenities
1 cr. per case
NIL
अन्य प्लान हेड्स
2.5 cr. per case
Nil
M&P items
10 lakh per case
Nil
50 lakh (हालांकि LAW के तहत इस प्रकार के सभी कार्य PCME स्तर पर स्वीकृत होने चाहिए जो रेलवे बोर्ड द्वारा दिये गए अनुदान के भीतर हो)

Friday, 29 May 2020

Works Programme

Works Programme

निर्माण कार्यक्रम क्या है? यह कैसे संकलित किया जाता है?


परिभाषा:
इंजीनियरिंग संहिता अध्याय -VI
रेलों पर परिसंपत्तियों के सृजन(creation),अधिग्रहण (acquisition) और बदलाव (replacement) से संबंधित निवेश निर्णय तीन विभिन्न प्रोग्रामों के जरिए संसाधित किए जाते हैं।

(1) रोलिंग स्टॉक प्रोग्राम (प्लान हेड 21)
(2) मशीनरी एवं प्लांट प्रोग्राम (प्लान हेड 41)
(3) निर्माण कार्यक्रम (विभिन्न प्लान हेड के तहत)

वर्क्स प्रोग्राम के चार चरण है

(1) अग्रिम योजना के भाग के रूप में योजनाओं(स्कीमों) का निरूपण;
(2) बड़ी योजनाओं की छानबीन और स्वीकृति के लिए रेलवे बोर्ड को प्रस्तुत करना ताकि आगामी वर्ष में निष्पादित की जाने वाली परियोजनाओं का चयन किया जा सके;
(3) रेलवे बोर्ड द्वारा निर्धारित वित्तीय सीमाओं के अंतर्गत प्रारंभिक निर्माण कार्यक्रम(PWP) तैयार करना और
(4) रेलवे बोर्ड के साथ विचार-विमर्श और अंतिम कार्यक्रम प्रस्तुत करना(FWP)

चरण प्रथम   (अग्रिम योजना)

  • किसी रेलवे का वार्षिक निर्माण कार्यक्रम तैयार करना उस वर्ष का कोई अलग-अलग कार्य नहीं होता है बल्कि मंडल अधिकारी के स्तर से लेकर रेलवे बोर्ड तक की एक अनवरत योजना प्रक्रिया का भाग होता है।
  • मंडल से होने वाले निवेश प्रस्ताव वह होते हैं जिनका उद्देश्य मंडल के ही भीतर परिचालन में सुधार या जमघट (बाधाओं)को समाप्त करना हो।
  • जिन बड़े निवेश प्रस्तावों से क्षेत्रीय रेल प्रणाली या सभी भारतीय रेलों को लाभ पहुंचता हो उन्हें रेल मुख्यालय के स्तर पर अथवा आवश्यक हो तो रेलवे बोर्ड के स्तर पर समन्वित और योजनाबद्ध किया जाना चाहिए।
  • नई लाइनों, आमान परिवर्तनों, दोहरी लाइन बिछाने और लाइन क्षमता से संबंधित अन्य निर्माण कार्यों के लिए जो 5 करोड़ रुपए से अधिक की लागत वाले हो, विस्तृत यातायात और इंजीनियरी सर्वेक्षण किए जाने चाहिए।
  • नए मार्शलिंग यार्डों, माल टर्मिनलों और यातायात यार्डों आदि के प्रस्ताव के संबंध में, कार्य अध्ययन दलों को चाहिए कि अपेक्षित अतिरिक्त सुविधाओं के लिए स्कीमें बनाने से पहले वास्तविक कार्यप्रणाली का अध्ययन कर लें ।
  • रेट ऑफ रिटर्न 10% और उससे अधिक होना चाहिए।
  • जब किसी सामान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कई कार्य करने हो तो समग्र रूप से संपूर्ण योजना का वित्तीय फलितार्थ या औचित्य तैयार किए जाने चाहिए।
  • यदि किसी विस्तृत योजना में दो रेले शामिल हो, तो ऐसे मामले में रेलवे बोर्ड के विचारार्थ लागत का एक संयुक्त प्राक्कलन तैयार किया जाना चाहिए ।जिस रेलवे के क्षेत्र में कार्य का बड़ा भाग आता हो, उसे चाहिए कि लागत और वित्तीय फलितार्थ के संयुक्त आँकड़े रेलवे बोर्ड को प्रस्तुत करने के लिए, संलग्न  रेलवे से आंकड़े प्राप्त करें।

चरण द्वितीय (बड़ी योजनाओं की छानबीन)

  • 20 लाख रुपये या अधिक की लागत वाली सभी स्कीमें विस्तृत रूप से तैयार की जानी चाहिए और निम्नलिखित बातों के पूरे ब्यौरे सहित रेलवे बोर्ड को भेजी जानी चाहिए।
(i) तकनीकी विशेषताएं
(ii) ब्यौरेवार लागत
(iii) प्राप्त होने वाले संभावित लाभ
(iv) वित्तीय फलितार्थ
(v) प्रत्येक प्रस्ताव का मानचित्र
  • रेल प्रशासन को स्पष्ट रूप से प्रत्येक स्कीम का उल्लेख करना चाहिए और इस बात की पुष्टि करनी चाहिए कि प्रस्ताव द्वारा उद्देश्य की पूर्ण रूप से पूर्ति होती है और परियोजना का दायरा और लागत यथासंभव पूरे छानबीन के बाद तय किए गए हैं, जिसमें वित्तीय फलितार्थों का मूल्यांकन भी सम्मिलित है।
  • बोर्ड द्वारा योजनाओं की छानबीन हो जाने के पश्चात रेल प्रशासनों को बताया जाना चाहिए कि प्रस्तावों को निर्माण कार्यक्रम में सम्मिलित करने के लिए संशोधन पूर्वक या ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया गया है।
  • 20 लाख रुपये या इससे अधिक की लागत वाले रेल पर नवीनकरण के सभी प्रस्तावों में (i) यातायात का घनत्व (ii) ट्रैक की आयु (iii) रेलपथ संघटकों (components) की स्थिति होनी चाहिए। ये प्रारंभिक छानबीन रेलवे बोर्ड द्वारा रेल पथ सामग्री की उपलब्धता, पहले से स्वीकृत निर्माण कार्यों की प्रगति और अन्य तकनीकी बातों को ध्यान में रखकर की जाती है।

चरण तृतीय (प्रारंभिक निर्माण कार्यक्रम तैयार करना PWP)

  • इस बात को  सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी  प्रधानतः PCE (Principal chief engineer) रेलवे मुख्य इंजीनियर की होगी की विभिन्न विभागों द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव हर प्रकार से पूर्ण है और सही-सही तैयार किया गया है।
  • बोर्ड द्वारा बताई गई सीमाओं के भीतर समग्र प्राथमिकताएं भी उसी के द्वारा महाप्रबंधक और अन्य विभागाध्यक्षों के परामर्श से नियत की जाएगी। वह प्रारंभिक और अंतिम निर्माण कार्यक्रम को तैयार करने उसे समय पर प्रस्तुत करने के लिए जिम्मेदार होगा।
  • रेलवे बोर्ड को चाहिए कि प्रत्येक वर्ष लगभग जून/जुलाई में प्रत्येक रेलवे को सूचित कर दें कि प्रत्येक योजना शीर्ष के संबंध में कुल कितने परिव्यय के भीतर रेलवे द्वारा निर्माण कार्यक्रम तैयार किया जाए।
  • रेल द्वारा आगामी वर्ष का प्रारंभिक निर्माण कार्यक्रम रेलवे बोर्ड को सितंबर के प्रथम सप्ताह तक या बोर्ड ने उससे पहले की कोई तारीख निर्धारित की हो तो उस तारीख तक प्रस्तुत कर दिया जाना चाहिए। प्रत्येक निर्माण कार्य का समुचित वित्तिय मूल्यांकन प्रमुख वित्त सलाहकार की टिप्पणियों सहित प्रारंभिक कार्यक्रम में दिया जाना चाहिए।
  • चालू निर्माण कार्यों (works in progress) को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • परियोजना लागत ,मात्रा और चालू कीमत दरों की दृष्टि से पक्के आंकड़ों पर आधारित होनी चाहिए और यदि परियोजना की प्रारंभिक तैयारी और निर्माण कार्यक्रम में इसको सम्मिलित किए जाने के समय के बीच की अवधि में कीमतों में कोई वृद्धि होती है तो माल-भाड़ा और किराए में वृद्धि के अतिरिक्त मजदूरी के और सामग्री के मूल्यों में हुए परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए प्राक्कलन को अपडेट किया जाना चाहिए।
  • किसी भी अन्य वृद्धि, जैसे परियोजना के दायरे में परिवर्तन के कारण होने वाली वृद्धि की अनुमति पूर्व कारण प्रस्तुत करके रेलवे बोर्ड की स्वीकृति लिए बिना नहीं दी जाएगी।
  • प्रत्येक निवेश प्रस्ताव के साथ एक विस्तृत प्लान संलग्न होना चाहिए जिसमें यातायात की आवश्यकताओं  के अनुरूप परियोजना का कार्यक्रम दिखाया गया हो तथा वर्ष के लिए प्रस्तावित वित्तीय परिव्यय इस परियोजना कार्यक्रम के अनुसार होना चाहिए, जिससे कि रेलवे बोर्ड कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए वस्तुतः धन की नियतन की व्यवस्था कर सके।

चरण चतुर्थ (अंतिम निर्माण कार्यक्रम FWP)


  • पृथक पृथक रेलों के कार्यक्रमों की जांच करने और महाप्रबंधकों के साथ विचार विमर्श करने के पश्चात रेलवे बोर्ड उन निर्माण कार्यों का विनिश्चय करेगा कि आगामी वर्ष के दौरान हाथ में लिए जाने चाहिए और और जो अंतिम निर्माण कार्यक्रम में शामिल किए जाने चाहिए।
  • क्षेत्रीय रेलवे रेलवे बोर्ड के विनिश्चय के परिणाम स्वरूप अपने निर्माण कार्यक्रमों को अशोधित करेंगे और रेलवे बोर्ड को अपना अंतिम निर्माण कार्यक्रम अनुबंधित तारीख तक भेजेंगे।
  • मांग सकल व्यय (Gross Expenditure) के लिए होगी और जमा और वसूलियों (credits and recoveries ) मांगों को फुटनोट के रूप में दिखाई जाएगी।





Tuesday, 26 May 2020

Differences between RECT and PECT

Differences between RECT and PECT



RECT SURVEY
PECT SURVEY
1.Full Form:-Reconnaissance       Engineering cum Traffic   Survey

1.Full Form:-Preliminary Engineering                          cum  Traffic  Survey
                  
2.इंजीनियरिंग सर्वेक्षण किसी क्षेत्र का रफ एवम्‌ रैपिड जाँच है।
2. यह सर्वेक्षण प्रस्तावित लाइन के निर्माण के लिए किया जाता है किंतु संरेखण (Alignment) में अंतिम रुप से खूँटा नहीं गाड़ा जाता है।
3. तकनीकी व्यवहारिकता तथा लगभग लागत मालूम करने के लिए किया जाता है ।
3 .लागत का सही प्राक्कलन ज्ञात करने के लिए किया जाता है ।
4. ये सर्वेक्षण बिना उपकरण के किया जाता है ।
4. प्राथमिक इंजीनियरिंग सर्वेक्षण विस्तृत उपकरणीय जांच है।
5.वह उपकरण जिनसे अनुमानित दूरी और ऊँचाई पता लग सके इस सर्वेक्षण के आधार पर ही यह फैसला किया जाता है कि और अन्वेषण कि जरूरत है कि नहीं।
5.इसमें टोह सर्वेक्षण कि अपेक्षा अधिक विस्तृत अध्ययन किया जाता है ।

Monday, 25 May 2020

Umbrella Works

Umbrella Works 
1.एक छतरी के नीचे विभिन्न स्थानों पर समान काम करने के लिए रेलवे बोर्ड द्वारा सिंगल वर्क के रूप में अनुमोदन देने को "अंब्रेला वर्क्स" कहते हैं।
2. "अंब्रेला वर्क्स" की अवधारणा 2018-19 से रेलवे में लाई गई है।
3.अंब्रेला वर्क के मुख्य उद्देश्य है:
(i) पूरे वर्ष कार्य स्वीकृति के लिए लचीलापन
(ii) उस क्षेत्र को चिन्हित कर चैनेलाइज करना जहां रेलवे निवेश करना चाहती है।
4.यह दो प्रकार के होते हैं :
(i) एक ऐसे कार्य जो एक ही रेलवे/यूनिट में संपन्न होता है।
(ii) एक ऐसे कार्य जो एक से अधिक रेलवे में संपन्न होता है।
5. प्लान हेड 11(नई लाइन), 14 (दोहरीकरण),15 (गेज परिवर्तन), 31 (ट्रैक रिन्यूअल), 35 (बिजली करण) के तहत अंब्रेला वर्क्स करने के लिए स्वीकृति रेलवे बोर्ड से लिया जाता है।
6. रेलवे बोर्ड से सूचना प्राप्त होते ही क्षेत्रीय रेलवे द्वारा डीपीआर तैयार कर रेलवे बोर्ड को भेजी जाएगी और कार्य की स्वीकृति होने पर अगले वर्ष के पिंक बुक में आइटमकृत कर प्रदर्शित किया जाएगा।
7. अन्य प्लान हेड्स के लिए और एक से अधिक जोनल रेलवे में फैले कार्यों के लिए AM/PED नोडल निदेशालय होगा और प्रत्येक जोन के लिए जरूरत के आधार पर पिंक बुक में कुल लागत और परिव्यय वितरित करेंगे।
8. प्रथम फेज में अंब्रेला वर्क्स के 80% कॉस्ट को महाप्रबंधक द्वारा स्वीकृत किया जाएगा।
9. द्वितीय फेज में अंब्रेला वर्क के 20% अतिरिक्त कॉस्ट को पूरे वर्ष के दौरान महाप्रबंधक अनुमोदन देंगे और अगर आवश्यकता हुई तो रेलवे बोर्ड से स्वीकृति ली जाएगी।
10. महाप्रबंधक 50 करोड़ तक के कार्य को स्वीकृत कर सकते हैं अगर डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) 50 करोड़ से अधिक है तो रेलवे बोर्ड स्वीकृति के लिए भेजी जाएगी प्रारंभ में महाप्रबंधक अंब्रेला वर्क्स के कॉस्ट के 80% तक अनुमोदन कर सकते हैं ।
11. अंब्रेला वर्क्स के तहत स्वीकृत विभिन्न कार्य को सब- वर्क्स के रूप में जाना जाएगा और LAW बुक में इसे अलग से दिखाया जाएगा।
12. विस्तृत प्राक्कलन प्रत्येक कार्य के लिए अलग से दिखाया जाएगा।
13. अंब्रेला फंड को डिविजन वाइज बांटने का निर्णय रेलवे द्वारा किया जाएगा।

लाभ

(i) वास्तविक में अप्रत्यक्ष रूप से अंब्रेला वर्क शून्य आधारित बजट पर कार्य करता है।
(ii) चिन्हित क्षेत्रों में निवेश किया जाता है।
(iii) जोनल रेलवे को कार्यों को प्राथमिकता देने में भी लचीलापन लाता है।

Saturday, 9 May 2020

Way leave charges

WAY LEAVE CHARGES 

पैरा 1033E

  1. भारतीय रेलवे द्वारा अन्य विभाग , प्राइवेट कंपनियों और स्थानीय नागरिकों को अपनी जमीन या ट्रैक के ऊपर या अंदर उपयोग करने के लिए जो सुविधा दी जाती है और उसके बदले जो राशि प्रभार के रूप में रेलवे के द्वारा ली जाती है उसे "वे लीव चार्ज" कहते हैं।
  2. यह रेल अधिनियम 1989 की धारा 16 और 17 के अंतर्गत शासित है जिसके अनुसार रेलवे भूमि से लगी हुई भूमि के स्वामियों और अधिभोगियों के लिए रेलों को कुछ निर्धारित कार्य करने और उनके रखरखाव के आदेश दिए गए हैं ताकि जिस भूमि से होकर रेल लाइन बिछाई गई है उसके उपयोग में रेलवे द्वारा उत्पन्न व्यवधान को दूर किया जा सके।
  3.  ऐसे कार्यों में समपार, मार्ग, नालियां, जल स्रोत आदि बनाना शामिल है। इसके अतिरिक्त निजी मकानों और निर्माणों तक मार्ग /पहुंच, जल सप्लाई और सीवर के लिए भूमिगत पाइप लाइनों, बिजली और टेलीफोन के तारों आदि के रूप में रेलवे की भूमि पर मार्गाधिकार की व्यवस्था के लिए कई बार अनुरोध प्राप्त होते हैं, कई मामलों में रेलवे संरेखण के मूल स्वरूप और विस्तार को देखते हुए यह अपरिहार्य होते हैं।
  4. वे लीव में पार्टी को भूमि के कब्जे या दखल का कोई अधिकार दिए बिना तथा रेलवे के हक, नियंत्रण और भूमि के उपयोग को किसी प्रकार प्रभावित किए बिना मार्ग आदि जैसे विनिर्दिष्ट प्रयोजन के लिए पार्टी द्वारा भूमि का सीमित उपयोग शामिल है।
  5. इस तरह के अनुरोध पर तभी विचार किया जा सकता है जब : (i)संपत्ति /मकान के लिए पहुंच का कोई अन्य रास्ता उपलब्ध ना हो (ii)किसी अन्य दिशा में जल ,सप्लाई ,बिजली सीवर  आदि की व्यवस्था न हो।
  6. वे लीव सुविधा को दिनचर्या के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए प्रत्येक मामले में साइट निरीक्षण के आधार पर विचार करना चाहिए।
  7. वे लीव सुविधाओं के लिए दरें कार्य की प्रकृति पर निर्भर करती है और रेलवे बोर्ड के दिशा निर्देश के अनुसार तय किया जाता है । उदाहरण के लिए भूमिगत पाइपलाइन के बिछाने के लिए भूमि के  बाजार मूल्य का 10% न्यूनतम 20 हजार रुपये।

अनुबंध के समय सावधानियां

  • अनुबंध में यह ध्यान रखा जाए कि पार्टी को जमीन पर कब्जे का कोई अधिकार नहीं है । इसका अर्थ हुआ की भूमि का लाइसेंस नहीं दिया जाता है बल्कि केवल सीमित उपयोग, जो करार में विस्तृत रूप से विनिर्दिष्ट किया हो ,के लिए अनुमति दी जाती है।
  • इस तरह के अनुबंध में "लाइसेंस" और "लाइसेंस फीस" जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाए बल्कि "अनुमति" और "मार्गाधिकार प्रभार" शब्दों का प्रयोग किया जाए।
  • करार में यह भी स्पष्ट रूप से तय किया जाए कि रेल प्रशासन को संबंधित पार्टी को किसी तरह का कोई नोटिस दिए बगैर किसी भी समय उस भूमि में प्रवेश करने, गुजरने और उसका प्रयोग करने का पूर्ण अधिकार है।
  • मार्गाधिकार सुविधा समाप्त हो जाने की स्थिति में उस पार्टी को न तो किसी तरह की क्षतिपूर्ति या प्रतिपूर्ति राशि के भुगतान और ना ही पहुंच मार्ग आदि के लिए वैकल्पिक व्यवस्था कराने के लिए उत्तरदायी होगा, ऐसे मामलों में उस पार्टी द्वारा बिछाई गई भूमिगत पाइप लाइनें आदि उस पार्टी को अपनी लागत पर हटानी/दूसरी जगह ले जाने होगी।

पंजीकरण शुल्क:-

आवेदन पत्र के साथ ₹20 हजार जमा शुल्क जिसे सर्वे एवं विस्तृत प्राक्कलन/वे लीव चार्ज में बाद में समायोजित कर दिया जाएगा।

प्रोसेसिंग और स्वीकृति वे लीव प्रस्ताव का


Sr.DEN(Co-ord) द्वारा संसाधित (processed) एवम मंडल रेल प्रबंधक द्वारा मंजूरी की जाएगी एवम संबंधित मंडल वित्त द्वारा सहमति ली जाएगी।

(2006W,2017-18 Expenditure)

Cost-Plus Contract


Cost-Plus-Contract(लागत-प्लस अनुबंध)

  • कॉस्ट प्लस अनुबंध एक ऐसा अनुबंध है जिसमें किसी कंपनी को खर्च के साथ-साथ  लाभ की एक विशिष्ट राशि  प्रतिपूर्ति की जाती है।
  • यह कॉन्ट्रैक्ट फ़िक्स-कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट  के विपरीत है, फिक्स कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट में दो पार्टी बिना खर्च की परवाह किए एक विशिष्ट लागत के लिए सहमत होते हैं।
  • कॉस्ट प्लस अनुबंध मुख्य रूप से खरीददार कॉन्ट्रैक्ट की सफलता के लिए कॉन्ट्रैक्टर को देती है क्योंकि ठेकेदार को आकर्षित करने वाली पार्टी मानती है कि ठेकेदार अपने वायदे पर काम करेगा और अतिरिक्त भुगतान करने से ठेकेदार लाभ कमा सकेगा।
  • यह अनुबंध कुछ हद तक सीमित किया जा सकता है जैसे कि निर्माण के दौरान ठेकेदार त्रुटि करता है तो उससे उसका लाभ नहीं दिया जा सकता है, यह अनुबंध आमतौर पर अनुसंधान और विकास गतिविधियों में उपयोग किया जाता है।


लाभ

1. यह ठेकेदार के जोखिम को कम करता है।
2. इसमें काम की गुणवत्ता पर जरा ध्यान दिया जाता है बजाय लागत पर।

हानि

1. इसमें अंतिम लागत दिखाया जाएगा क्योंकि यह पूर्व निर्धारित नहीं होता।
2. यह परियोजना की समयावधि को बढ़ा सकता है।

Friday, 8 May 2020

Negotiation


Negotiation (समझौता वार्ता)

  1. किसी समझौते पर पहुंचने के उद्देश्य से किए गए विचार-विमर्श को "निगोशिएशन" कहा जाता है।
  2. भारतीय रेलवे के वर्क्स टेंडर में बातचीत के द्वारा ठेकेदार का चयन नियम के बजाय एक अपवाद स्वरूप है, और इसका उपयोग तब किया जा सकता है जब सभी निविदाओं का मूल्य यथोचित रूप से उच्च माना जाता है और यह माना जाता है कि पुनः निविदा बुलाना रेलवे को बेहतर लाभ नहीं पहुंचा सकता है।
  3. सामान्य तौर पर एल-1 जो सबसे कम, वैद्य, योग्य और तकनीकी रूप से स्वीकार्य ठेकेदार हैं ,उसके साथ अनुबंध किया जाएगा यदि दरें अनुचित रूप से अधिक नहीं हो।
  4. यदि दरें अनुचित रूप से उच्च थी तो यह निर्णय लिया जाएगा कि पुनः निविदा आमंत्रित करना है या एल-1 के साथ बातचीत करना चाहिए ,इसका निर्धारण निविदा समिति की सिफारिश के आधार पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा लिया जाना चाहिए।
  5. सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्धारित ठेकेदार के साथ वार्ता के लिए निर्णय लेने के बाद निम्नलिखित प्रक्रियाओं को अपनाया जाना चाहिए।
(I) L-1 के अलावा अन्य निविदाकारों के साथ बातचीत की अनुमति नहीं है।
(II) आगे L-1 द्वारा मूल रूप से उद्धृत दरें, बातचीत की विफलता की स्थिति में, स्वीकृति के लिए खुली रहेगी।
(III) निविदाकारों के साथ बातचीत करने और संशोधित दर प्राप्त करने और स्वीकृति के उसी की सिफारिश करते हुए, निविदा समिति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रेलवे के वित्तीय हितों की सुरक्षा की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरी तरह देखा गया है।


नोट:- उपरोक्त निर्देशों को विशेष कार्यों या उपकरणों के लिए निविदा पर सख्ती से लागू नहीं किया जा सकता है, जहां ठेकेदार अपनी विशिष्टताओं औऱ डिजाइनों  के अनुसार विभिन्न कारणों जैसे कि प्रौद्योगिकी में सुधार आदि के लिए बोली लगा सकते हैं और उनके साथ तकनीकी और अन्य विवरणों पर चर्चा किया जा सकता है ।वार्ता की प्रक्रिया FA&CAO  के परामर्श से प्रत्येक मामलों के गुणों पर तय की जानी चाहिए।



(2012W,2015W Exp.)

Thursday, 7 May 2020

Assets Register

Assets Register(संपत्ति रजिस्टर)

  1.  20 लाख रुपए से अधिक लागत वाली इमारतों सहित सभी परियोजनाओं की निवेश लागत को संपत्ति रजिस्टर में दर्ज किया जाता है।
  2. संपत्ति रजिस्टर का रखरखाव फार्म संख्या 1720 E में किया जाता है।
  3. इमारतों के मामले में, सूचना फार्म संख्या 1977 E में इमारत रजिस्टर में डॉकेट की जाएगी।
  4. इमारतों और 20 लाख रुपए से कम की लागत वाले निर्माण को छोड़कर अन्य सभी की स्वीकृत समापन रिपोर्ट और समापन प्राक्कलन 5 वर्ष तक परिरक्षित रखा जाता है।
  5. अन्य निर्माण कार्यों की समापन रिपोर्टों को एक बार परिसंपत्ति रजिस्टर या इमारत रजिस्टर में सूचना डॉकेट हो जाने पर परिरक्षित रखने की आवश्यकता नहीं है।
  6. संपत्ति रजिस्टर में सूचना स्वीकृत समापन रिपोर्टों से दर्ज की जाती है।
  7. जब परियोजना निर्माण संगठन द्वारा निष्पादित कर ली जाती है तो रजिस्टर रिकॉर्ड के हस्तांतरण के रूप में चालू लाइन संगठन को सौंप दी जाती है ताकि वह इसे स्थाई रिकॉर्ड के रूप में रख सके।
  8. सभी परियोजनाओं को परिसंपत्ति रजिस्टर में इसलिए डॉकेट किया जाता है ताकि सूचना की पुनः प्राप्ति की सुविधा है और यदि अपेक्षित हो तो परियोजना पश्चात मूल्यांकन किया जा सके।


परिसंपत्ति रजिस्टर                                 फार्म E 1720

  1. निर्माण कार्य का नाम........................
  2. प्रारंभ होने की तारीख........................
  3. समापन की तारीख........................
  4. समापन रिपोर्ट संख्या और तारीख..............
  5. समापन रिपोर्ट को स्वीकृत करने वाले प्राधिकारी.......
  6. समापन लागत......................

नोट:- समापन लागत में उप निर्माण कार्य वार/ उप प्राक्कलन वार लागत बताई जाएगी।

7.निवेश अनुसूची
वर्ष
निवेश कि राशि

कैपिटल 
DRF    
DF
 रेवेन्यू     





जोड़







लेखा अधिकारी                                                                मंडल इंजीनियर


(महत्वपूर्ण प्रश्न एक्सपेंडिचर विषय के लिए)
2006WO,2012W,2016W,2017-18


Saturday, 2 May 2020

Surveys

सर्वेक्षण (Surveys)

  1. रेलवे नई लाइन, गेज परिवर्तन, दोहरीकरण एवं अन्य यातायात सुविधाओं को विकसित करने से पहले विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षण करते हैं।
  2. इस सर्वेक्षण में भौगोलिक क्षेत्र की जांच, उस क्षेत्र के बारे में जानकारी इकट्ठा करना एवं उस क्षेत्र के विवरण का रिकॉर्ड किया जाता है।
  3. ये विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षण निम्नलिखित है 
  4. (i)यातायात सर्वेक्षण (Traffic Survey)
         (ii)टोह सर्वेक्षण (Reconnaissance  Survey)
         (iii)प्राथमिक सर्वेक्षण (Preliminary Survey)
         (iv)अंतिम स्थान सर्वेक्षण (Final location Survey)

(i) यातायात सर्वेक्षण :

यातायात सर्वेक्षण यह एक विस्तृत अध्ययन है जो इसलिए किया जाता है कि नई लाइनों के मामले में यातायात की संभावनाओं की भविष्यवाणी की जा सके ताकि सर्वाधिक आशाजनक मार्ग के प्रोजेक्शन में सुविधा हो तथा बनाई जाने वाली लाइन की कोटी निर्धारित की जा सके। साथ ही इसलिए भी कि मौजूदा लाइन पर यातायात की मात्रा का आकलन किया जा सके और यह निर्धारित किया जा सके कि उस लाइन पर कौन-कौन सी यातायात सुविधाएं देनी होगी। यह सर्वेक्षण टोह या प्रारंभिक इंजीनियरी सर्वेक्षणों के साथ साथ किए जाएंगे ताकि सिफारिशें बनाते समय वैकल्पिक प्रस्तावों की तकनीकी व्यवहारिकता तथा लागत को ध्यान में रखा जा सके।


यातायात सर्वेक्षण किसी क्षेत्र या खंड की यातायात संबंधी परिस्थितियों के विस्तृत अध्ययन का नाम है, जो नई लाइन परियोजनाओं, फिर से बिछाए जाने वाली लाइनों ,अमान परिवर्तन योजनाओं ,दोहरी लाइन बिछाने के कार्यों या लाइन की क्षमता से संबंधित अन्य बड़े कार्यों की यातायात संभाव्यता और वित्तीय फलितार्थों का आकलन के लिए किया जाता है।

किसी परियोजना के आर्थिक अध्ययन के बाद ही इस नई परियोजित रेलवे लाइनों या अमान परिवर्तन आदि के बारे में निर्णय लिया जा सकता है। यातायात सर्वेक्षण में यह आकलन करने की कोशिश की जाती है कि पूर्व कल्पनीय भविष्य में कुल कितना यातायात पैदा होने की संभावना है और यह आकलन केचमेंट एरिया तथा रेल और सड़क के बीच कुल यातायात के विभाजन के विशेष संदर्भ में किया जाता है।

अर्जन और संचालन व्यय की संगणना परियोजना के आर्थिक जीवन जोकि 30 वर्ष माना जा सकता है के प्रत्येक वर्ष के लिए की जानी चाहिए ,ताकि वार्षिक नकदी प्रवाह तकनीक (DCF Technique) लागू करते हुए परियोजना का मूल्यांकन करके यह देखा जा सके कि क्या इससे 10% का न्यूनतम स्वीकार्य प्रतिफल मिल जाएगा।

यातायात (वाणिज्य या परिचालन) विभाग के किसी अनुभवी प्रशासी अधिकारी को यातायात सर्वेक्षण का काम नियमतः सौंपा जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए की प्रत्याशित यातायात ,पूंजी लागत और आवर्ती खर्चे (Recurring expenses)  के प्राक्कलन वास्तविक है और परियोजना का वित्तीय मूल्यांकन , प्रत्येक चरण पर निवेश और प्रतिफल के फेजिंग सहित ,यथासंभव सही-सही और काफी वस्तु निष्ठा के साथ किया जाए ,उपयुक्त हैसियत प्रवर वेतनमान (Senior-scale) या प्रशासी ग्रेड (Administration Grade) के किसी लेखा अधिकारी को, जिसे यातायात लागत निर्धारण का अनुभव हो, शुरू से ही यातायात सर्वेक्षणअधिकारी के साथ सहयोजित कर देना चाहिए और वह सर्वेक्षण दल के साथ मिलकर काम करेगा। परियोजना के इंजीनियरी सर्वेक्षणों के इंचार्ज मुख्य इंजीनियर परियोजना के यातायात सर्वेक्षण के समग्र इंचार्ज भी होंगे और यातायात सर्वेक्षण की रिपोर्ट उनके सामान्य मार्ग निर्देशन में तैयार की जाएगी ताकि सुनिश्चित हो सके सबसे अधिक किफायती प्रस्ताव तैयार किए गए हैं। रेल प्रशासन द्वारा यातायात सर्वेक्षण दल को जो  विचारार्थ विषय सौंपे जाए उनमें यह हिदायत भी दी जाए की किस किस्म के अन्वेषण किए जाएंगे और उनका दायरा क्या होगा। यातायात सर्वेक्षण दल को भी चाहिए कि फील्ड में कार्य होते समय और अवकाश की अवधि में भी समय-समय पर मुख्यालय जाते रहे ताकि वे महाप्रबंधक से और अन्य प्रधान अधिकारियों से परामर्श कर सके और आवश्यकता होने पर मूल विचारार्थ विषयों ,समर्थ प्राधिकारी से अशोधित कर सके। यह इसलिए आवश्यक है कि मुख्य लाइन प्रशासन अन्वेषणअधीन नई लाइन आदि के अभिकल्प निर्धारित कर सकें।

(ii)टोह सर्वेक्षण (Reconnaissance Survey)


"टोह" शब्द का अर्थ है किसी क्षेत्र के ऐसे सभी रफ और रैपिड इन्वेस्टिगेशन (स्थूल और द्रुत अन्वेषण)जो किसी परियोजित रेलवे लाइन के एक अथवा अधिक मार्गों की तकनीकी व्यवहारिकता तथा अनुमानित लागत (approximate cost) मालूम करने के लिए किए जाए। ये अन्वेषण, फील्ड में अधिक सावधानीपूर्वक अन्वेषण किये बिना, भारतीय सर्वेक्षण विभाग के कंटूर मानचित्रों और अन्य उपलब्ध सामग्री की सहायता से की जानेवाली साधारण जांच के आधार पर किये जाते हैं और उनमें केवल ऐसे उपकरणों का उपयोग किया जाता है जिनसे अनुमानित दूरियां तथा ऊंचाइयों द्रुत गति से मालूम किया जा सके।

इस सर्वेक्षण में निम्नलिखित जानकारी एकत्रित की जाती है।

(i) हिल्स घाटियों में  पानी का क्षेत्र, जलवायु द्वीप आदि जैसे क्षेत्रों की विशेषताएं।
(ii) मिट्टी की प्रकृति
(iii) क्षेत्र में नदियों की धारा ,उनकी अनुमानित चौड़ाई ,गहराई आदि
(iv) पहाड़ियों एवं झीलों की स्थिति

इस सर्वेक्षण में बैरोमीटर, प्रिजमेटिक कम्पास, द्वीपदीय दूरबीन पेडोमीटर उपकरण की आवश्यकता होती है।

जहां उपयुक्त आकाशी फोटोग्राफ उपलब्ध हो वहां यथा अपेक्षित उपकरणों द्वारा क्षेत्र अन्वेषण से फोटोग्राफी के त्रिविमीय अध्ययनों और स्थल निरीक्षणों से  पर्याप्त रूप से बचा जा सकता है उन्हें छोड़ा जा सकता हैं।

(iii) प्रारंभिक सर्वेक्षण (Preliminary Survey)

इस सर्वेक्षण में उस मार्ग अथवा उन मार्गों की विस्तृत उपकरणनिय जांच की जाती है जो "टोह सर्वेक्षण" के परिणाम स्वरूप चुने गए हो ताकि इस सर्वेक्षण के अधीन परियोजित लाइन की निकटतम संभावित लागत का अनुमान लगाया जा सके। यातायात सर्वेक्षण के साथ इस सर्वेक्षण पर विचार करके जो परिणाम निकले सामान्यतः उसी से यह निश्चय किया जाएगा की लाइन बनाई जाए अथवा नहीं। किंतु निर्माण प्रारंभ करने से पूर्व रेलवे बोर्ड अंतिम मार्ग निर्धारण सर्वेक्षण पर आधारित प्राक्कलन की मांग कर सकता है । प्रारंभिक सर्वेक्षण अधिक परिशुद्धता के साथ किया जाना चाहिए क्योंकि अंतिम मार्ग के संरेखण इस पर निर्भर करता है।

(iv)अंतिम स्थान-निर्धारण सर्वेक्षण (Final location survey)


अंतिम मार्ग निर्धारित सर्वेक्षण, सामान्यतः ये क्रम में नहीं होता है। इसे अंतिम रूप से रेलवे बोर्ड द्वारा तय किया जाता है कि लाइन का निर्माण होगा अथवा नहीं तब ये सर्वेक्षण किया जाता है ।अंतिम मार्ग निर्धारण में अपेक्षित कार्य तथा प्रारंभिक सर्वेक्षण में अपेक्षित कार्य के बीच मुख्य अंतर यह है कि अंतिम मार्ग निर्धारण सर्वेक्षण के दौरान अंतिम रूप से चुने गए संरेखण (alignment) में जमीन पर ,थियोडोलाईट और/या इलेक्ट्रॉनिक दूरी मापक उपकरणों से पूरी तरह खूंटी लगा दिए जाने चाहिए, रिपोर्ट पूर्ण होनी चाहिए तथा विस्तृत नक्शे एवं सेक्शन प्रस्तुत किए जाने चाहिए।


इंजीनियरी संहिता अध्याय दो एवं तीन